पीने के पानी के बाद नींद ही ऐसी चीज है जिसका डॉक्टर आपको ध्यान रखने के लिए कहते हैं. प्रत्येक मनुष्य को कम से कम सात घंटे की नींद लेने की सलाह दी जाती है. लेकिन इसका समय भी महत्वपूर्ण है. हाल ही के एक अध्ययन में पाया गया है कि जो टीनएजर्स देर रात तक जागते हैं और सुबह देर तक सोते हैं, उनमें एलर्जी और अस्थमा होने की आशंका उन लोगों की तुलना में अधिक होती है, जो समय पर सोते और सुबह जल्दी जागते हैं.
ईआरजे ओपन रिसर्च नामक पत्रिका में प्रकाशित रिसर्च के अनुसार यह बात यूनिवर्सिटी ऑफ अल्बर्टा, कनाडा के एक रिसर्च में सामने आई है. यह रिसर्च इसके पल्मोनरी मेडीसिन विभाग के डॉक्टर सुभ्रता मोइत्रा के नेत्तृव में किया गया, जब वे बार्सिलोना इंस्टीट्यूट ऑफ ग्लोबल हेल्थ, स्पेन काम कर थीं.
शोधकर्ताओं के अनुसार अध्ययन के निष्कर्ष नींद के महत्व को और अधक प्रबल बनाते हैं, विशेष रूप से टीएनएजर्स में. अध्ययन में पश्चिम बंगाल के 13 - 14 वर्ष की आयु के 1,684 टीनएजर्स ने भाग लिया. इनसे कई प्रश्न पूछे गए जैसे कि क्या वे सुबह जल्दी उठते, रात को देर से सोते हैं या फिर इन दोनों से अलग हैं. दिन के किस समय वे थके हुए महसूस करते हैं, वे कब उठना पसंद करते हैं आदि. उनसे पूछा गया था कि वे किसी भी सांस की घरघराहट का अनुभव करते हैं, अस्थमा, एलर्जी जैसे नाक बहना और छींकना आदि.
रिसर्चर्स ने उनकी नींद की आदतों के साथ उनके लक्षणों की तुलना की और उन अन्य कारकों को भी ध्यान में रखा जो जैसे कि अस्थमा के प्रभाव जैसे रहने की स्थिति, परिवार के धूम्रपान करने वाले सदस्य के साथ रहना. रिसर्च में सामने आया कि अस्थमा होने की संभावना उन टीनएजर्स में में लगभग तीन गुना अधिक थी, जो देर से सोते थे और सुबह देर से जागते थे.
डॉक्टर मोइत्रा के अनुसार रिसर्च के परिणाम बताते हैं कि सोने के समय और टीनएजर्स में अस्थमा और एलर्जी के बीच एक संबंध है। हम निश्चित तौर पर तो नहीं कह सकते हैं कि देर से सोना अस्थमा का कारण बन रहा है, लेकिन स्लीप हार्मोन मेलाटोनिन अक्सर देर से सोने वालों में सिंक से बाहर हो जाता है और टीनएजर्स में एलर्जी रिपोन्स को प्रभावित करता है.