Basant Panchami 2023, Season of Spring: भारतीय संस्कृति में त्योहारों और पंरपराओं का अपना महत्व रहा है. वैसे तो कई तीज-त्योहार होते हैं,जोकि धार्मिक होते हैं. लेकिन बसंत का आगमन किसी धर्म का नहीं बल्कि प्राकृतिक त्योहार है. इसलिए सभी ऋतुओं में बसंत को श्रेष्ठ और ऋतुओं का राजा यानी ऋतुराज बसंत कहा गया है.
रंग और उमंग है ‘बसंत’
स्वर्ग में ऐसा प्राकृतिक सौन्दर्य ऋतु सौन्दर्य, खेतों में सरसों के तथा वृक्षों-लताओं में रंग-बिरंगें फूलों से पृथ्वी जैसा श्रृंगार कहां? यहां तो बसंत में पक्षियों के कलरव, भौरों का गुंजन तथा पुष्पों की माद्कता से युक्त वातावरण बसंत ऋतु की अपनी विशेषता है. बसंत पंचमी के समय बोराएं आमों पर मधुर गुंजार तथा कोयल की कूल, मुखारित होने लगती है. पृथ्वी पर फैली हरियाली मन को उल्लासित कर लोगों के पांव थिरकने, नृत्य करने के लिए विवश कर देती है.
बाग-बगीचों में यौवन जैसा लावण्य उत्कर्षित कर मुग्ध कर देता है. इसीलिए कई देवता, स्वर्ग की अप्सराएं, यक्ष आदि विभिन्न रूपों में यहां विचरण कर प्रसन्नता प्राप्त करते हैं. ग्रहों के चेहरों पर मुस्कान खिल उठती है, हंसवाहिनी, वीणा वादिनी देवी सरस्वती के प्रिय बसंतोत्सव के संदर्भ में भारतीय पुरातन ग्रंथों, संस्कृत साहित्यों में वर्णित संदर्भ के अनुसार ऐसे समय रानी सर्वाभरण भूषिता होकर पैरों को रंजित कर अशोक वृक्ष पर हल्के से बायें पैर से आघात करती थी तब अशोक वृक्ष पर पुष्प खिल उठते थे. खेतों में गेहूं, जौ, सरसों की बालियों में निखार आने लगता है. एक नई मस्ती, उल्लास, उमंग, उत्सवप्रियता है बसंत.
बसंत पंचमी का महत्व
बसंत पंचमी के दिन किसान अपने खेतों से नया अन्न लाकर उसमें गुड़-घी मिलाकर अग्नि, पितरों, देवों को अर्पण करते हैं और नया अन्न ग्रहण करते हैं. देवी सरस्वती की पूजा-उपासना की जाती है. देवी सरस्वती हिन्दू धर्म की सभी प्रमुख देवियों में से एक है. वाणी, वाग्देवी, भारती, शारदा, बागेश्वरी इत्यादि इनके अन्य पर्याय हैं. ये शुक्लवर्ण, श्वेत वस्त्रधारिणी, वीणावादनतत्परा तथा श्वेतवसना कहीं गई है. इनकी उपासना करने से मूर्ख भी विद्वान बन सकता है. माघ शुक्ल पंचमी को इनकी पूजा की परंपरा चली आ रही है.
बसंत पंचमी पर सरस्वती पूजा
बसंत पंचमी के दिन यानी माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को देवी सरस्वती की पूजा का विधान है. इस वर्ष 26 जनवरी 2023 को देवी सरस्वती की पूजा के लिए एक दिन पूर्व नियम, पूजा-साधना के लिए निगमबद्धता का संकल्प लें. इसके बाद दूसरे दिन नित्य कर्मों से निवृत होकर पूजा के स्थान पर कलश स्थापित कर श्री गणेश, भगवान श्रीविष्णु, भगवान शिव और सूर्य देव की पूजा करें फिर विधिपूर्वक देवी सरस्वती की पूजा और वंदना करें. पूजा में देवी सरस्वती को पीले रंग के पुष्प अर्पित करना न भूलें.
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