बाइपोलर डिसऑर्डर एक मानसिक बीमारी है जो डिप्रेशन और मूड में बदलाव की वजह बनती है. उसमें रोगी की मनोदशा दो विपरीत अवस्था में बदलती रहती है. बीमारी की चपेट में आने के बाद कई बार व्यवहार पर नियंत्रण रखना मुश्किल हो जाता है. औसतन एक शख्स को इसका पता 25 साल की उम्र के आसपास चलता है, लेकिन लक्षण किशोरावस्था या बाद में भी जाहिर हो सकते हैं. 


बाइपोलर डिसऑर्डर के लक्षण
बाइपोलर डिसऑर्डर से पीड़ित शख्स को अक्सर सोने में दुश्वारी होती है. उसके अन्य लक्षणों में व्यवहार का चिड़चिड़ा हो जाना, पागलपन और डिप्रेशन दोनों एक साथ होना, ऊर्जा में कमी, काम को पूरा करने में परेशानी, अक्सर खोये खोये रहना, विचार मग्न रहना, जल्दी-जल्दी बोलना, खुद को चोट पहुंचाना, आत्महत्या का विचार शामिल हैं. पीड़ित शख्स का जिंदगी के प्रति दृष्टिकोण नकारात्मक हो सकता है. बीमारी पुरुषों और महिलाओं को समान रूप से प्रभावित करती है. पुरुषों को महिलाओं की तुलना में जल्दी बाइपोलर डिसऑर्डर होने की संभावना होती है. कुछ लोगों को बहुत ज्यादा व्याकुलता का भी अनुभव हो सकता है. ये जोखिम भरा व्यवहार जैसे खुदकुशी के प्रयास का कारण बनती है.


बाइपोलर डिसऑर्डर की वजह
शुरुआत में लक्षणों का पता चलने से प्रभावी इलाज हो सकता है. हालांकि, रोग के प्रमुख कारणों का पता नहीं चल पाया है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि पर्यावरणीय और जेनेटिक कारक हालत के शुरू होने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. परिवार के किसी करीबी सदस्य में बीमारी के होने से बाइपोलर डिसऑर्डर होने की संभावना स्पष्ट रूप से बढ़ जाती है. उसके अलावा, दिमाग के न्यूरोट्रांसमीटर्स में असंतुलन से बाइपोलर डिसऑर्डर समेत मूड का विकार हो सकता है. जेनेटिक रूप से बाइपोलर डिसऑर्डर और सिजोफ्रेनिया में बहुत समानता है. मानसिक स्वास्थ्य की अन्य खराबी जैसे चिंता बाइपोलर डिसऑर्डर की संभावना को बढ़ा सकता है. तनाव को बाइपोलर डिसऑर्डर समेत ज्यादातर मानसिक स्वास्थ्य की स्थितयों में महत्वपूर्ण योगदान करनेवाला पाया गया है.


बाइपोलर डिसऑर्डर की रोकथाम


बाइपोलर डिसऑर्डर लंबे समय तक रहनेवाली स्थिति है. इसलिए, पीड़ित शख्स को दवा से ज्‍यादा प्‍यार और प्रोत्‍साहन की जरूरत होती है. अगर आपको किसी में लक्षण दिखाई दे, तो दवा या विशेषज्ञ के लिए डॉक्टर से संपर्क करें. जीवनशैली में बदलाव भी बीमारी की रोकथाम में मददगार हो सकते हैं. इसलिए, नियमित व्यायाम करें, खाने और सोने के शेड्यूल का पालन करें, अपने मूड में आए उतार-चढ़ाव को समझने की कोशिश करें, तनाव को नियंत्रित करना सीखें, सेहतमंद शौक या स्पोर्ट्स की तलाश करें, अल्कोहल न पीएं. कुछ लोग लक्षणों को हल्का करने के लिए खास सप्लीमेंट्स लेते हैं, लेकिन उसके इस्तेमाल से संभावित मुद्दे हो सकते हैं. ऐसे में जरूरी हो जाता है कि किसी सप्लीमेंट्स को लेने से पहले डॉक्टर को बताएं.


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