मोटापे की शिकार मां से पैदा होनेवाले लड़कों में बांझपन का 40 फीसद ज्यादा खतरा-रिसर्च
रिसर्च में खुलासा किया गया है कि प्रेगेन्सी के दौरान मोटापे की शिकार महिलाओं और बच्चों के बीच बांझपन का संबंध मिला. शोधकर्ताओं ने बताया कि प्रेग्नेसी के दौरान मां का शारीरिक वजन आगे चलकर लड़कों के प्रजनन स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर सकता है.
मोटापे की शिकार मां से पैदा होनेवाले लड़कों में व्यस्क होने पर बांझपन का खतरा अन्य के मुकाबले 40 फीसद ज्यादा हो सकता है. चौंकानेवाला खुलासा एक्टा ओबेस्ट्रिका एट गाइनोकोलिजिका स्कैनडिनाविका पत्रिका में प्रकाशित नए रिसर्च से हुआ है. मोटापा शरीर में कई बदलाव लाता है जो पेट में पल रहे गर्भ को भी प्रभावित करता है. माना जाता है कि हार्मोन की खराबी या मिनरल की कमी भ्रूण के विकास को धीमा करता है.
मोटापे की शिकार मां से पैदा होनेवाले लड़कों को बांझपन का खतरा
शोधकर्ताओं का कहना है कि ऐसे लड़के जिनकी मां का बॉडी मास इंडेक्स प्री प्रेग्नेन्सी 25 या उससे ज्यादा होता है, उनमें बांझपन का खतरा 40 फीसद तक बढ़ जाता है. इसके मुकाबले जिन मां का बॉडी मास इंडेक्स सामान्य यानी 18.5 से 24.9 तक होता है, उनकी बच्चियों को खतरा नहीं होता. डेनमार्क में शोधकर्ताओं ने रिसर्च के लिए 9 हजार से ज्यादा ऐसे व्यस्कों को शामिल किया जिनकी मां 1984-97 के बीच प्रेग्नेट थीं. प्रतिभागियों में लड़के और लड़कियों की पहचान की गई.
प्रेग्नेसी में मां का वजन लड़कों के प्रजनन स्वास्थ्य को करता है प्रभावित
शोधकर्ताओं का कहना है 9 हजार 232 व्यस्कों में करीब 9 फीसद की संख्या बांझपन का शिकार थी. रिपोर्ट के मुताबिक, प्रेगेन्सी के दौरान 25 या ज्यादा बॉडी मास इंडेक्स वाली महिलाओं और बच्चों के बीच बांझपन का संबंध मिला. शोधकर्ताओं ने बताया कि नतीजे उस सबूत में इजाफा करते हैं जिनसे जाहिर होता है कि प्रेग्नेसी के दौरान मां का शारीरिक वजन आगे चलकर लड़कों के प्रजनन स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर सकता है. गौरतलब है कि दुनिया भर में बांझपन तीन दशक में बढ़ा है और इस दौरान मोटापे की समस्या में भी इजाफा हुआ है.
दुनिया भर में बांझपन से आठ जोड़ों में से एक प्रभावित है. शोधकर्ताओं का कहना है कि प्रेग्नेसी के दौरान वजन को बढ़ने से रोकना भविष्य की नस्लों को बांझपन से बचाने का अहम जरिया साबित हो सकता है. उन्होंने रिसर्च के दौरान कई पहलू जैसे मां की उम्र, धूम्रपान की तारीख और अल्कोहल के इस्तेमाल को भी ध्यान में रखा. डेनमार्क के आरहस यूनिवर्सिटी में महामारी रोग विशेषज्ञ लिन अरेन्डट ने कहा, "मोटापा वैश्विक जन स्वास्थ्य समस्या और महत्वपूर्ण है कि रिसर्च जोखिम के फैक्टर पर फोकस करता है."
उन्होंने बताया कि फैट्टी टिश्यू हार्मोन से सक्रिय होते हैं और मां के पेट में बच्चों पर उसका असर पड़ता है. इसके अलावा प्रजनन तंत्र के विकास में दखलअंदाजी कर सकते हैं. ये पहली बार है जब प्रेग्नेसी के दौरान मां का शारीरिक वजन और उनके बेटों में बांझपन के बीच संबंध का पता लगाया गया है. मोटापा को निम्न श्रेणी के मेटाबोलिक सूजन से भी जोड़ा गया है, जो शुरुआती जिंदगी में प्रजनन फिटनेस के कार्यक्रम में प्रस्तावित फैक्टर है.
शोधकर्ताओं ने बताया कि ये रिसर्च उस परिकल्पना का समर्थन करता है जिसमें मां का ज्यादा शारीरिक वजन लड़कों के प्रजनन सेहत को प्रभावित करता है मगर इस सिलसिले में ठोस सबूत के लिए आगे और रिसर्च की जरूरत है. रिसर्च टीम ने बताया कि लड़कों के लिए बांझपन का ज्यादा खतरा होने की वजह स्पष्ट उजागर नहीं हुई.
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