क्या ठंडे पानी में तैरना डिमेंशिया के खतरे को कर सकता है कम? शोधकर्ताओं ने किया चौंकानेवाला खुलासा
शोधकर्ताओं का कहना है कि ठंडे पानी में तैराकी से डिमेंशिया के खिलाफ सुरक्षा मिल सकती है.उन्होंने पहली बार लंदन के नियमित तैराकों के खून में 'कोल्ड शॉक' प्रोटीन का पता लगाया है.
क्या ठंडे पानी में तैराकी से दिमाग को डिमेंशिया जैसी पेचीदा बीमारियों से सुरक्षा मिल सकती है? इस सिलसिले में, कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने सनसनीखेज दावा किया है. उनका कहना है कि ठंडे पानी में तैराकी डिमेंशिया के खतरे से बचा सकती है.
क्या ठंडे पानी में तैराकी डिमेंशिया से बचा सकती है?
दुनिया में पहली बार लंदन के पार्लियामेंट हिल लीडो के नियमित तैराकों के खून में 'कोल्ड शॉक' प्रोटीन पाया गया है. ये प्रोटीन डिमेंशिया के खतरे को कम करनेवाला साबित हुआ है. कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में यूके डिमेंशिया रिसर्च इंस्टीट्यूट के प्रोफसर गिवोवन्ना मलुकी कहते हैं, "ये खोज नई दवाओं की तरफ शोधकर्ताओं को पता बता रही है कि डिमेंशिया रोग को रोकने में मदद मिल सकती है."
उनका ये भी कहना है कि हालांकि, नया शोध शुरुआती चरण में है, लेकिन काफी आशाजनक है. हाइबरनेशन की क्षमता तमाम स्तनपायी जीवों को बरकार रखे हुए है, जो सर्दी में जाहिर होते हैं. फिलहाल, ब्रिटेन में दस लाख से ज्यादा डिमेंशिया के मरीज हैं और आशंका जाहिर की जा रही है कि 2050 तक डिमेंशिया रोगियों की तादाद दोगुनी हो सकती है.
डॉक्टरों को क्यों नजर आ रहा है आशाजनक?
इसलिए, शोधकर्ता बीमारी की रोकथाम के लिए इलाज का नया तरीका ढूंढने में लगे हैं क्योंकि वर्तमान विकल्प में सीमित प्रभाव हैं. डॉक्टरों को ये बात पहले से मालूम है कि कुछ खास परिस्थिति में ठंड पहुंचाने से दिमाग को सुरक्षा मिलती है. सिर के जख्म और कार्डियक ऑपरेशन के जरूरतमंद लोगों को सर्जरी के दौरान अक्सर ठंडा किया जाता है. मगर, अभी तक ये बात समझ में नहीं आ सकी है कि क्यों ठंड सुरक्षात्मक प्रभाव देता है. डिमेंशिया का संबंध दिमाग की कोशिकाएं के बीच छिपा होता है.
अल्जाइमर और अन्य न्यूरो संबंधी खराबी के शुरुआती चरण में, ये दिमागी संबंध गुम हो जाते हैं. डिमेंशिया मुख्य रूप से बुढ़ापे की बीमारी होती है. सर्दी के तैराकों पर किए गए कैंब्रिज के शोध को अभी किसी वैज्ञानिक पत्रिका में जगह नहीं मिली है बल्कि उसे ऑनलाइन व्याख्यान में शेयर किया गया है. शोधकर्ताओं के सामने चुनौती इंसानों में प्रोटीन उत्पादन को प्रेरित करने वाली दवा का पता लगाने कीे है. प्रोफसर मलुकी बताते हैं, "अगर पूरी आबादी पर कुछ साल तक भी डिमेंशिया के विकास को धीमा कर दिया, तो इसका स्वास्थ्य और आर्थिक रूप से असाधारण प्रभाव हो सकता है."
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