भारत में बच्चों में मोटापे की दर बढ़ने का खुलासा, कारण, फैक्टर और रोकथाम के उपाय जानें
बचपन का मोटापा अभिभावकों के लिए प्रमुख चिंता बनती जा रही है. आंकड़े बताते हैं कि भारत में स्कूल जानेवाले 6-8 फीसद के बीच बच्चे मोटापे की एक सीमा से जूझते हैं. खास बदलाव बचपन के मोटापे की रोकथाम के लिए किए जा सकते हैं.
कोविड-19 महामारी ने भारत की आबादी को अप्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष तरीके से प्रभावित किया है. लोग या तो इस बीमारी के शिकार हो गए हैं या किनारे पर हैं. अब जबकि महामारी की दूसरी लहर में बच्चे प्रभावित आयु वर्ग बने हुए हैं, इस बीच नई रिपोर्ट से पता चला है कि भारत में बच्चे अधिक वजन वाले हैं, काफी हद तक खराब जीवनशैली बिताते हैं.
दिल्ली के बच्चों पर किए गए सर्वेक्षण से अब खुलासा हुआ है कि 51 फीसद से ज्यादा बच्चों का बीएमआई अस्वस्थ है, इसका मतलब है कि हर दो में से एक बच्चा खराब जीवनशैली की आदतों से जूझ रहा है और अधिक वजन वाला हो सकता है. रिपोर्ट के मुताबिक, अस्वस्थ जीवनशैली और मोटापा कोविड-19 के समय में न सिर्फ शीर्ष जोखिम फैक्टर है, बल्कि बचपन का मोटापा भी बाद के वर्षों में बहुत ज्यादा चिंताजनक विकार से जुड़ता है. उससे भी चिंताजनक ये है कि बचपन का मोटापा भारत में बढ़ रहा है, दुनिया में मोटे बच्चों की दूसरी सबसे बड़ी संख्या का घर.
बचपन के मोटापे से कैसे निबटें
आंकड़े बताते हैं कि भारत में स्कूल जानेवाले 6-8 फीसद के बीच बच्चे मोटापा की एक सीमा से जूझते हैं. उनके मोटे होने की कई वजह हैं, जो जीवनशैली से लेकर आनुवांशिक और हार्मोन्स शामिल है. कई अन्य जोखिम फैक्टर भी हैं जो आपके बच्चे के मोटा होने के खतरे को बढ़ाते हैं. उसमें आनुवांशिकता, डाइट, व्यायाम की कमी, आर्थिक-सामाजिक हैसियत, खास दवाइयां, खराब पोषण और घर पर ज्यादा भोजन शामिल हैं. हालांकि, सबसे महत्वपूर्ण कारण बच्चे के मोटापा के पीछे उनकी जीवनशैली है जिसे कोविड-19 महामारी ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया है.
बच्चों के स्क्रीन के सामने बैठने, मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को बढ़ानेवाली शारीरिक गतिविधि नहीं होने से हाईपरटेंशन, हाई कोलेस्ट्रोल और टाइप 2 डायबिटीज, स्ट्रोक, स्लीप एपनिया, जोड़ों का दर्द और किसी हद तक कैंसर का ज्यादा खतरा होता है. इन स्वास्थ्य पेचीदगियों के अलावा, मोटे बच्चों की हंसी उड़ाई जा सकती है, परेशान किया जा सकता है और उनका वजन के कारण मजाक बनाया जा सकता है. इससे बच्चे का आत्म विश्वास, छवि प्रभावित होती है और उनके डिप्रेशन और चिंता में जाने का जोखिम रहता है.
अभिभावकों को करने के काम
इलाज से बेहतर बचाव की कहावत बहुत पुरानी है और यहां पर भी यही नियम लागू होता है. बच्चे के मोटापा को रोकना उसकी जटिलताओं से निपटने की तुलना में बेहतर है. खास बदलाव बचपन के मोटापा की रोकथाम के लिए किए जा सकते हैं.
फल और सब्जी के सेवन को बढ़ाएं.
बच्चों के लिए एक मिसाल पेश करें.
नींद को बेहतर बनाने की कोशिश करें.
फूड को छोड़कर अन्य बच्चों को इनाम दें.
फूड के साथ स्वस्थ संबंध को बनाने में मदद करें.
अभिभावक के तौर इस प्रक्रिया के दौरान अपने बच्चे की मदद करना आपका दायित्व है. आप अपनी आदतों में बदलाव लाए बिना उनसे आदतों के बदलने की उम्मीद नहीं कर सकते. माता-पिता बच्चों के आदर्श होते हैं और अगर आप चाहते हैं कि उनका व्यवहार बदले, तो आपको दिखाने की जरूरत होगी कि कैसे ये करना है. उन्हें बताएं कि कैसे स्वस्थ जीवनशैली बिताना है और पौष्टिक विकल्पों को अपनाना है.
क्या आपका बच्चा किसी खास विषय से चिढ़ता है? इन आसान तरीकों से पैदा करें दिलचस्पी
Weight Loss: वजन कम करने का सफर नींबू अदरक की चाय के साथ बनाएं आसान