हमारे भोजन का सेवन और जलवायु परिवर्तन के बीच अटूट संबंध है. जलवायु परिवर्तन हमारे खाद्य आपूर्ति की सुरक्षा के लिए खतरा है. बढ़ते तापमान और खराब मौसम सभी का पशुधन और फसल पर प्रभाव पड़ता है. जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए हमें समझने की जरूरत है कि कैसे दुनिया को रहने योग्य बनाने के लिए साधारण पोषण संबंधी आदतों को बदला जाए. जलवायु परिवर्तन पूरे फूड सिस्टम को प्रभावित करता है और इस तरह हमारा पोषण भी प्रभावित होता है.
साधारण भोजन की आदतों का कई मामलों पर विशाल प्रभाव होता है. विशेषज्ञों का कहना है कि हमारे खानेवाले भोजन का निर्माण ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन से लेकर सबको प्रभावित करता है. पर्यावरण में मीथेन का उत्पादन, कीटनाशकों का इस्तेमाल, वनों की कटाई और पानी की अत्यधिक खपत ये सभी एक साथ मिलकर धरती के लिए सबसे अनुपयुक्त परिस्थितियों का निर्माण करते हैं, जो अंत में जलवायु परिवर्तन की तरफ ले जाते हैं.
जलवायु परिवर्तन और कृषि
जलवायु परिवर्तन आगे बुरी तरह कृषि को प्रभावित करता है, चाहे समय पर बारिश की कमी या प्राकृतिक आपदाओं की वजह हो. उसका असर भोजन की उपलब्धता, कीमत, संपूर्ण कैलोरी के सेवन के साथ-साथ गुणवत्ता पर पड़ती है. पूरे खाद्य प्रणाली श्रृंखला में जलवायु परिवर्तन दुनिया की कृषि को प्रभावित करने की क्षमता रखती है. इसमें कृषि उत्पादन, भंडारण, वितरण, खुदरा और थोक बाजार तक शामिल है.
कोविड के दौरान प्राथमिकता
महामारी ने हमारी जिंदगी को विराम दे दिया है और लाइफस्टाइल के प्रति फिर से सोचने को मजबूर कर दिया है. फिटनेस के बाद स्वास्थ्य सबसे महत्वपूर्ण पहलू के तौर पर उभरा है. ग्राहक अपनी खरीदारी के बारे में ज्यादा चौकन्ना होने लगे हैं. स्थानीय कारोबार से लेकर पर्यावरण के अनुकूल लोगों ने अपने सामान्य इस्तेमाल के प्रोडक्ट्स को बदलना शुरू कर दिया है.
वेजिटेरियन, वीगन डाइट के प्रति ज्यादा आकर्षण बढ़ा है. दुनिया भर में शाकाहार की तरफ मुड़ने के लिए प्लांट बेस्ड दूध को स्वीकार करने का अधिक कारण बन गया है. प्लांट बेस्ड फूड्स मांस और डेयरी के विकल्प के तौर पर जाने जाते हैं. उसके अलावा, लोग अपनी प्लेट में अधिक सब्जियों को शामिल करने के लिए जागरुक हो रहे हैं. गैर डेयरी विकल्पों के बारे में कहा जाता है कि उसमें सैचुरेटेड फैट कम होते हैं और प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स, फाइबर, कैल्शियम, पोटैशियम, सोडियम और विटामिन्स अधिक होते हैं.
कुछ लोगों को दूध से एलर्जी होती है. रिसर्च से पता चलता है कि एक बच्चे के तौर पर आपका शरीर लैक्टोज को तोड़ सकता है, लेकिन जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, उसके तोड़ने की क्षमता कम हो जाती है. डायरिया, मुंहासे जैसे लक्षण लैक्टोज असंवेदनशीलता के नतीजे में होते हैं. जैसे-जैसे लोगों को इसकी पहचान हो रही है, प्लांट बेस्ड विकल्पों की तरफ रुख करने की जरूरत महसूस की जा रही है.
रिसर्च के मुताबिक, प्लांट बेस्ड डाइट में बदलाव ने फिट शरीर और ऊंचे ऊर्जा लेवल के साथ लोगों को फायदा पहुंचाया है. उसके अलावा, वीगन और प्लांट बेस्ड डाइट के लिए उपभोक्ता का झुकाव भारत में लगातार बढ़ रहा है.
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