कोविड-19 वैक्सीन की चर्चा हम अक्सर सुन रहे हैं. कोरोना वायरस के वैक्सीन को लेकर क्लिनिकल ट्रायल से लेकर ह्यूमन ट्रायल तक हो रहे हैं लेकिन अब तक कोई प्रभावी टीका नहीं बनाया जा सका है. साथ ही टीका कितना प्रभावकारी होगा, इसका भी कोई अनुमान नहीं है. कोरोना वैक्सीन के प्रभाव को लेकर डर बना हुआ है लेकिन कोविड-19 वैक्सीन अभी भी दवाओं की तुलना में इस महामारी से लड़ने में ज्यादा व्यावहारिक हो सकती है. ऐसा विशेज्ञषों का मानना है.

ऐसा मानने के निम्नलिखित कारण हैं:

1. इलाज के लिए कोई एक दवा स्वीकृत नहीं

कोविड-19 के इलाज के लिए अभी तक कोई एक दवा को मान्यता नहीं मिली है. दुनिया भर के डॉक्टर संक्रमण के कुछ लक्षणों का मुकाबला करने और बीमारी की गंभीरता को कम करने के लिए विभिन्न दवाओं का उपयोग कर रहे हैं. अभी जिन दवाओं का इस्तेमाल किया जा रहा है उनमें से ज्यादातर का इस्तेमाल सर्दी, वायरल बुखार, अन्य संक्रमण के इलाज के लिए किया गया है. ये दवाएं कितनी प्रभावी हैं, इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है. दवाओं के इतर सार्स-कोव-2 वायरस से लड़ने के लिए उसे ध्यान में रखकर वैक्सीन का निर्माण किया जा रहा है. कैंब्रिज यूनिवर्सिटी द्वारा तैयार की गई एक वैक्सीन सभी वायरस का मुकाबला कर सकती है. इसलिए इलाज के लिए दवाएं केवल एक अस्थायी समाधान है.

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2. हर किसी के लिए दवा कारगर नहीं

अभी जिन दवाओं का इस्तेमाल किया जा रहा है, उनके साथ सबसे बड़ी समस्या सीमित प्रभाव को लेकर है. उम्र, बीमारी की गंभीरता और संवेदनशीलता के आधार पर कोविड-19 की दवाएं सभी के लिए काम नहीं कर सकती हैं। विभिन्न लक्षणों के लिए विभिन्न दवाओं को डिजाइन करना भी एक बोझिल काम है.

उदाहरण के लिए अभी इस्तेमाल की जाने वाली कुछ सबसे अधिक चर्चित और फ़ायदेमंद दवाएं जैसे डेक्सामेथासोन और रिडेलिवर कोविड-19 के सभी मरीजों के लिए कारगर नहीं है. जबकि डेक्सामेथासोन मध्यम या गंभीर कोरोना मरीजों के लिए सबसे प्रभावी पाया गया है. रेमेडिसविर जो एक एंटी-वायरल दवा है, उसका भी आपातकालीन स्थिति में सीमित इस्तेमाल किया जा रहा है.

कुछ लोगों को कुछ दवाओं से भी एलर्जी हो सकती है. इसके अलावा प्लाज्मा थेरेपी जैसे विकल्प अभी भी सभी के लिए पूरी तरह से प्रभावी नहीं पाए गए हैं. लाभ के बावजूद कई वैश्विक परीक्षणों ने इससे जुड़ी समस्याओं के बारे में बात की है.

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3. दवाओं के साइड इफेक्ट का खतरा

कोरोना मरीजों को दी जा रही दवाओं के साइड इफेक्ट भी सामने आए हैं. मलेरिया की दावा हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन (HCG) के उपयोग से सबसे अधिक दुष्प्रभाव सामने आए. जब दवा पहली बार काम करने लगी, तो कई अध्ययनों में पाया गया कि जिन रोगियों को कोविड उपचार के लिए HCQ दिया गया, उनमें हृदय और फेफड़ों के क्षतिग्रस्त होने के संकेत मिले. न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन (एनईजेएम) में एक रिपोर्ट को रेखांकित किया गया है कि यह गंभीर रूप से बीमार रोगियों के लिए काम नहीं करता है.

4. दवाओं के रेट भी फिक्स नहीं

जब मरीजों ने सर्ज प्राइसिंग और कुछ जीवन रक्षक कोविड दवाओं की अनुपलब्धता की शिकायत की तो विवाद पैदा हो गए. रेमेडिसवियर जैसी दवा 60 हजार रुपये तक ब्लैक में बिकने की खबर आई. एक या दो समूहों को छोड़कर फार्मा कंपनियां अभी मामूली कीमतों पर टीकों की आपूर्ति करने के लिए बातचीत कर रही हैं. उम्मीद जताई जा रही है कि सभी को टीका उपलब्ध कराने के लिए इसकी कीमत कम रखी जाएगी.

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