कोविड-19 महामारी के दौरान घरों में कैद बच्चे मोटापे के खतरे का ज्यादा सामना कर रहे हैं. स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने चेताया है कि शारीरिक गतिविधि, मेलजोल की कमी और ज्यादा जंक फूड के सेवन से बच्चों को खतरा बढ़ गया है. उनका कहना है कि कोविड-19 संभावित तौर पर मध्यम और उच्च सामाजिक आर्थिक ग्रुप में मोटापा स्थिति को खराब कर रही है.
बच्चों को मोटापा के खतरे का सामना
कोविड-19 के नतीजे में आर्थिक, फूड और स्वास्थ्य तंत्र की खराबी से कुपोषण की सभी किस्मों के आगे बढ़ने की उम्मीद है. ये खुलासा ताजा राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण से हुआ है. महामारी से पहले 22 राज्यों में किया गया सर्वेक्षण देश के बच्चों की खराब स्थिति पेश करता है. सर्वे से कई राज्यों में कुपोषण के उछाल का पता चला है, दूसरी तरफ 20 साल के बच्चों में मोटापा की वृद्धि की झलक भी दिखाता है. एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि मिशन पोषण में सरकार के लिए मोटापा की रोकथाम पर फोकस करना बड़ा मुद्दा है.
कोरोना वायरस का बुरा प्रभाव उजागर
स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने कहा है कि ज्यादा वजन और मोटापे की स्थिति कोविड-19 के संभावित नतीजों हैं जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. कोविड-19 से मध्यम और उच्च सामाजिक-आर्थिक ग्रुप में ज्यादा वजन की स्थिति को खराब करने की संभावना है. उनका कहना है कि घरों में कैद युवा और स्कूल की उम्र के बच्चों का रुझान बिस्किट, नमकीन, नूडल, आइस क्रीम, केक और मीठा ड्रिंक्स या उच्च कैलोरी और शून्य पोषण मान वाले स्नैक्स की तरफ बढ़ा है.
पब्लिक हेल्थ न्यूट्रिशन एंड डेवलपमेंट सेंटर, दिल्ली की डॉक्टर शीला वीर ने बताया "ये सामग्री कार्बोहाइड्रेट, शुगर और फैट से भरपूर होती है और पाबंदी से बोरियत दूर करने के लिए खाई जाती है." मोटापा के बुरे प्रभाव से आगाह करते हुए विशेषज्ञों का कहना है कि बचपन का मोटापा असमय मौत और व्यस्कता में अपंगता के ज्यादा संभावना से जुड़ा होता है. उससे बचने के लिए स्कूल और सामुदायिक सतह पर जागरुकता और शिक्षा, स्वस्थ खानपान की आदतें, जीवनशैली के पैटर्न और नियमित व्यायाम को बढ़ावा दिया जाना चाहिए.
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