कोविड-19 प्रकोप को एक साल से ज्यादा हो गया है, भारत अभी भी वायरस संक्रमण के सबसे खतरनाक चरण में फंसा हुआ है. देश वर्तमान में कोरोना वायरस की दूसरी लहर से गुजर रहा है. संक्रमण के मामले में आए दिन की बढ़ोतरी ने भारत के कुल केस लोड में बेतहाशा इजाफा किया है. संक्रमण दर को रोकने के लिए कई कंपनियां वैक्सीन लेकर आई हैं, लेकिन सवाल लोगों के दिमाग में बना हुआ है कि आखिर कोविड-19 वैक्सीन से सुरक्षा कब तक रहती है?
किस लेवल पर लोग वायरस की चपेट में आ सकते हैं?
विशेषज्ञ अभी तक नहीं जानते हैं क्योंकि उनका रिसर्च अभी भी डोज ले चुके लोगों पर जारी है ये देखने के लिए कब सुरक्षा खत्म हो सकती है. किस तरह वैक्सीन उजागर हुए वेरिएन्ट्स के खिलाफ काम करती है, इस सवाल का जवाब उस वक्त मिलेगा अगर कब और कितनी बार अतिरिक्त डोज की जरूरत हो सकती है. वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के वैक्सीन शोधकर्ता डेबोरा फुलर कहते हैं, "हमारे पास केवल तब तक के लिए जानकारी है जब तक वैक्सीन पर रिसर्च किया गया है. हमें वैक्सीन लगवा चुके लोगों पर रिसर्च करना है और देखना है कि किस लेवल पर लोग फिर वायरस की चपेट में आ सकते हैं?"
कोविड-19 वैक्सीन से सुरक्षा कब तक रहती है?
अब तक, फाइजर के जारी परीक्षण से संकेत मिलता है कि कंपनी की दो डोज वाली वैक्सीन अत्यधिक प्रभावी यानी कम से कम छह महीनों के लिए है और थोड़ा ज्यादा हो सकती है. शोधकर्ताओं ने बताया कि मॉडर्ना की कोविड-19 वैक्सीन का दूसरा डोज लेने के छह महीने बाद लोगों के सभी ग्रुप में एंटीबॉडी की सक्रियता ऊंची रही रही. एंटी बॉडीज भी संपूर्ण कहानी नहीं बताती है. वायरस जैसे हमलावरों से लड़ने के लिए हमारा इम्यून सिस्टम भी सुरक्षा का दूसरा लेवल है जिसे बी और टी सेल्स कहा जाता है. अगर उनका भविष्य में उसी वायरस से मुकाबला होता है, तो लड़ाई के परखे हुए सेल्स संभावित तौर पर ज्यादा तेजी से कूद सकते हैं. भले ही वो पूरी तरह बीमारी को नहीं रोकते हैं, मगर उसकी गंभीरता को कुंद करने में मदद कर सकते हैं. लेकिन कौन सी भूमिका 'मेमोरी' सेल्स कोरोना वायरस के साथ अदा करती हैं, और कब तक, ये अभी भी अज्ञात है.
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