iIpsos का हालिया मासिक सर्वे मई में शहरी भारतीयों की प्रमुख चिंताओं को जाहिर करता है. अप्रैल 2021 के मुकाबले मई में भारत के शहरी लोगों का निराशा लेवल बढ़ता हुआ नजर आया. कम से कम तीन में से दो भारतीयों ने कोरोना वायरस महामारी को सबसे चिंताजनक (66 फीसद) बताया और अप्रैल 2021 के मुकाबले चिंता के स्तर में 21 फीसद की बढ़ोतरी देखी गई.
कोरोना भारत के तीन में से दो भारतीयों की सबसे बड़ी चिंता
ये खुलासा एक नए सर्वे से हुआ है जिसमें लोगों ने बेरोजगारी को दूसरा नंबर 44 फीसद दिया, जबकि हेल्थकेयर तीसरी सबसे बड़ी चिंता के तौर पर 30 फीसद के साथ उभरी. आर्थिक/ सियासी भ्रष्टाचार चौथी चिंता (24 फीसद) देखी गई क्योंकि अप्रैल के बाद से 11 फीसद की गिरावट सामने आई, जबकि गरीबी और सामाजिक असमानता पांचवीं सबसे बड़ी चिंता (21) फीसद थी. 28 देशों का ग्लोबल एडवाइजर सर्वे 23 मार्च और 7 मई, 2021 के बीच Ipsos के जरिए किया गया था.
सर्वे में 52 फीसदी शहरी लोगों ने बताया देश सही रास्ते पर है
सर्वे में कनाडा, इजराइल, मलेशिया, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की और अमेरिका के 18 से 74 साल की उम्र वाले 19,070 व्यस्कों से सवाल पूछे गए, वहीं 21 अन्य देशों में 16 से 74 साल की उम्र वाले लोग शामिल रहे. सर्वे के मुताबिक, मई में कोरोना महामारी के दौरान शहरी भारत के हर दो में से एक (48 फीसद) शख्स ने जवाब दिया कि देश सही रास्ते पर नहीं है, जबकि 52 फीसदी भारत के शहरी लोगों ने माना कि देश सही रास्ते पर है. महत्वपूर्ण बात ये है कि अप्रैल के बाद से आशावाद में 11 फीसद की गिरावट रही.
अप्रैल में 63 फीसद लोगों ने माना था कि भारत सही दिशा में जा रहा है. सर्वे में शामिल सऊदी अरब के 88 फीसद और ऑस्ट्रेलिया के 62 फीसद नागरिकों ने बताया कि उनका देश सही दिशा में है और 'सबसे आशावादी बाजार' है. सर्वे ने ये भी जाहिर किया कि कोलंबिया के 91 फीसद, पेरु के 83 फीसद और अर्जेंटीना के 81 फीसद लोगों ने कहा कि उनका देश गलत ट्रैक पर है और निराशावाद में सबसे ऊंचा पायदान है.
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