कोरोना वायरस का डेल्टा (B.1.617.2) वेरिएन्ट अब दुनिया भर में संक्रमण के मामले बढ़ाने का कारण बन रहा है. इससे पहले, भारत में डेल्टा वेरिएंट की वजह से अप्रैल और मई के बीच महामारी की दूसरी लहर में संक्रमण दर लगभग दोगुनी हो गई थी. हालांकि, डेल्टा वेरिएन्ट के खिलाफ लड़ाई जारी है, लेकिन वायरस के उभरते हुए दो प्रकार कप्पा और लैम्बडा ने स्वास्थ्य विशेषज्ञों को चौकन्ना कर दिया है.
कोरोना के डेल्टा वेरिएन्ट के बाद कप्पा वेरिएन्ट
कोरोना वायरस के कप्पा और लैम्बडा वेरिएन्ट्स को विश्व स्वास्थ्य संगठन अप्रैल और जून में 'वेरिएन्ट्स ऑफ इंटेरेस्ट' बता चुका है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, वेरिएन्ट्स ऑफ इंटेरेस्ट 'सामुदायिक ट्रांसमिशन की वजह के लिए पहचाने गए हैं, या कई देशों में खोजे गए हैं.' दोनों वेरिएन्ट्स के स्पाइक प्रोटीन में कई म्यूटेशन होने की भी बात कही जाती है, जो वायरस के प्रसार के लिए अग्रणी कारक हो सकता है. डेल्टा वेरिएन्ट के वंश कप्पा (B.1.617.1) में एक दर्जन से ज्यादा म्यूटेशन हो चुके हैं. इस वेरिएन्ट को 'डबल म्यूटेंट' के तौर पर संबोधित किया जा रहा है क्योंकि उसके दो खास म्यूटेशन- E484Q और L452R पहचान में आए हैं.
दोनों वेरिएन्ट्स के मामले पहली बार भारत में आए
इसलिए इस वेरिएंट को डबल म्यूटेंट भी कहा जाता है. कप्पा का L452R म्यूटेशन वायरस से शरीर के प्राकृतिक इम्यून रिस्पॉन्स को बचने में मदद करता है. वेरिएन्ट का एक उप-वंश B.1.617.3 भी है जो स्वास्थ्य विशेषज्ञों के रडार पर है. डेल्टा वेरिएन्ट की तरह कप्पा का भी पहली बार पता भारत में चला था. भारत ने ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा जैसे देशों को पीछे छोड़ते हुए अब तक म्यूनिख के GISAID को कप्पा सैंपल की सबसे ज्यादा संख्या दर्ज कराई है. GISAID कोरोना वायरस के जिनोम का डेटा रखनेवाली वैश्विक संस्था है. GISAID को पिछले 60 दिनों में भारत के सबमिट किए गए सभी नमूनों का 3 फीसद है.
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