राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन ने लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित किया है. पोस्ट ट्रौमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) की मुसीबत ने लोगों की जिंदगी को मुश्किल बना दिया है. मानसिक रूप से परेशानी का खुलासा एक सर्वे में किया गया है.


कोविड-19 महामारी को काबू में करने के लिए लगाए लॉकडाउन का असर नजर आने लगा है. विशेषज्ञों का कहना है कि लॉकडाउन से लोग मनोवैज्ञानिक तौर पर बहुत बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. सर्वे को सफदरजंग अस्पताल, वर्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज की तरफ से किया गया था. इस दौरान अप्रैल में लॉकडाउन के चार सप्ताह पूरे हो चुके थे. PTSD एक मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्या है जो किसी ऐसी भयानक घटना से पैदा होती है जिसे व्यक्ति ने खुद अनुभव किया होता है. डिसऑर्डर के लक्षणों में फ्लैशबैक, सपने आना, बेचैनी शामिल होता है.


28.2 फीसद लोगों को जूझना पड़ा PTSD से


शोध करनेवाली टीम की प्रमुख अनिता खोखर ने बताया कि सर्वे में शामिल 28.2 फीसद लोगों को लॉकडाउन के असर से जूझना पड़ा. उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के दौरान लोग घरों में रहने को मजबूर हो गए. उनका पारिवारिक दोस्तों, पड़ोसियों और परिचितों से मिलना-जुलना सीमित हो गया. साक्षात मुलाकात पर भी लॉकडाउन का असर पड़ा. इसके अलावा महामारी के खौफ से भविष्य के प्रति लोगों के मन में अनिश्चितता है. ऐसी परिस्थिति में लोगों का मनोवैज्ञानिक तौर पर प्रभावित होना स्वाभाविक है.


सर्वे में शामिल लोगों को तनाव का स्तर बताने के लिए कहा गया था. हर स्तर के 22 लक्षण दिए गए थे. सर्वे में 28.2 फीसद लोगों ने माना कि उन्हें PTSD का करना पड़ा. 55.6 फीसद लोगों ने नींद में बाधा की शिकायत की. जब उनसे पूछा गया कि चार सप्ताह के लॉकडाउन में रहते चिड़चिड़ापन और गुस्से का कितना ज्यादा अनुभव किया? सवाल के जवाब में 40.2 फीसद लोगों ने 'थोड़ा' बताया जबकि 9.4 फीसद ने 'बहुत ज्यादा' कहा. 37. 6 फीसद लोगों ने माना कि लॉकडाउन के विचार से खुद को नजरअंदाज करने में सफलता पाई.


लॉकडाउन के असर पर सर्वे में खुलासा


शोधकर्ताओं ने बताया कि वास्तविक PTSD की समस्या और ज्यादा हो सकती है. लॉकडाउन को आगे बढ़ा देने से लोग सामान्य जीवन के प्रति लौटने को लेकर निश्चित नहीं थे. शोधकर्ताओं का ये भी कहना है कि सर्वे में समाज के सभी वर्गों को शामिल नहीं किया गया है. उन्होंने इसका कारण लॉकडाउन के दौरान अन्य विकल्पों का न होना बताया. सर्वे में सुझाव दिया गया है कि स्वास्थ्य से जुड़े लोग और अधिकारियों, मनोचिकित्सकों, मनोवैज्ञानिकों, डॉक्टरों, नर्स को लॉकडाउन से पैदा हुई समस्या के बारे में बताया जाना चाहिए. जिससे PTSD की बढ़ती समस्या का इलाज सही तरीके से किया जा सके.


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