Coronavirus: बुजुर्गों को संक्रमण से मौत का ज्यादा खतरा क्यों रहता है? नए शोध से हुआ खुलासा
बुजुर्ग मरीजों को कोरोना वायरस के जोखिम से मौत का खतरा ज्यादा रहता है.शोधकर्ताओं ने अलग-अलग उम्र का तुलनात्मक अध्ययन कर नतीजा निकाला है.
बुजुर्ग मरीजों को युवाओं की तुलना में कोरोना वायरस के जोखिम से मौत का खतरा ज्यादा रहता है. अलग-अलग उम्र के इम्यून रिस्पॉन्स की तुलना कर नए शोध में कारण को समझाने की कोशिश की गई है. शोधकर्ताओं का कहना है कि बीमारी से पीड़ित बुजुर्ग मरीजों में इम्यून सेल की कम मात्रा पैदा होती है.
अमेरिकन सोसायटी फोर माइक्रोबायोलोजी की पत्रिका एम बायो में प्रकाशित शोध के मुताबिक, उम्रदराज लोगों को युवाओं की तुलना में ज्यादा गंभीर बीमारियां होती हैं. उनमें इम्यून कंट्रोल का साइटोटोक्सिक हिस्सा वायरस के प्रति रिस्पॉंड करने में प्रभावी नहीं होता है.
शोध को अंजाम देनेवाले जर्मनी में यूनिवर्सिटी हॉस्पीटल एसेन के वायरस वैज्ञानिक जेनाडीय जेलिन्सकी और उनकी टीम में 30 लोगों के ब्लड सैंपल का परीक्षण किया. उनमें कोविड-19 का हल्का लक्षण था. ब्लड सैंपल के जरिए शोधकर्ताओं ने पता लगाया कि कैसे T सेल सार्स- कोव-2 संक्रमण के दौरान प्रतिक्रिया करता है. गौरतलब है कि T सेल संक्रमित कोशिकाओं को पहचान और खत्म करने के लिए जरूरी होता है.
20-90 साल के मरीजों पर किया गया शोध
20-90 साल के सभी मरीजों में शोधकर्ताओं ने पाया कि कोरोना वायरस के तीव्र संक्रमण से T सेल मरीजों के खून में स्वस्थ्य लोगों के मुकाबले कम पैदा हुए. जेनाडीय जेलिन्सकी कहते हैं कि T सेल की कमी कोविड-19 के कई अवांछित आश्चर्य में से एक है. उन्होंने बताया कि ज्यादातर वायरस शरीर के अंदर एक बार घुसने पर इम्यून सिस्टम के विस्तार में उत्प्रेरक का काम करते हैं.
उसमें T सेल भी शामिल होते हैं. ये वायरस से संक्रमित कोशिकाओं को हटाने में अहम भूमिका निभाते हैं. T सेल साइटोटोक्सिक अणुओं को पैदा कर शरीर में संक्रमित कोशिकाओं को मारते हैं. लेकिन जब किसी शख्स का इम्यून सिस्टम T सेल की कम मात्रा पैदा करता है तो वायरस संक्रमण की लड़ाई कमजोर हो जाती है.
साइटोटोक्सिक T सेल संक्रमण को काबू करता है
उन्होंने बताया कि 80-90 साल की उम्र के मरीजों में साइटोटोक्सिक अणु युवा मरीजों की तुलना में कम पैदा होते हैं. सार्स-कोव-2 वायरस मुंह या नाक की कोशिकाओं से जुड़ जाता है. जहां से ये वायरस फेफड़े तक पहुंचकर शरीर के अन्य अंगों में फैल जाता है. जेनाडीय जेलिन्सकी कहते हैं, "साइटोटोक्सिक T सेल वास्तव में संक्रमण के तीव्र चरण में कब्जे के लिए लड़ते हैं."
अगर बुजुर्ग मरीजों का इम्यून सिस्टम कम T सेल पैदा करता है तो ये सेल पूरी तरह हथियारबंद नहीं रह पाता. जिसके चलते सार्स-कोव-2 के खिलाफ अपर्याप्त रक्षा मिलती है. वायरल के अणु फैलते रहते हैं और नतीजे के तौर पर संक्रमण खराब होता चला जाता है. नए शोध से पता चलता है कि साइटोटोक्सिक T सेल शुरुआती संक्रमण को काबू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. हालांकि शोधकर्ताओं ने चेताया है कि अभी ये कहना जल्दबाजी होगा.
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