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कोरोना ने सिखाया सबक, ईमानदारी से जीना होगा जीवन

कोरोना वायरस ने हमें अपना जीवन बदलने को मजबूर कर दिया है. अब हम पहले की तरह से अपने जीवन को नहीं जी सकते हैं.कोरोना वायरस से निपटने के लिए हमें आयुर्वेद के जरिए तीन स्तरों पर काम करना होगा.

कोरोनावायरस ने हमें एक बहुत ही गंभीर सबक सिखाया है वह यह है कि अब हमें जीवन को पूरी तरह ईमानदारी के साथ जीना होगा. हम अपने साथ किसी भी प्रकार का छल नहीं कर सकते हैं . हमेंअपने स्वास्थ्य के प्रति हमें पूरी इमानदारी रखनी होगी.

अब यह नहीं चलेगा कि सुबह शाम गोली खा कर हम अपनी ब्लड शुगर को कम कर लें और मान लें की हमारी डायबिटीज ठीक है या गोली खाकर हमारा ब्लड प्रेशर ठीक चल रहा है, तो हम खुश हैं.

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हमारी इस बात के पीछे सारी दुनिया से प्राप्त हुए आंकड़ों का आधार है दिनांक 12 जून 2020 को सारी दुनिया से प्राप्त कोरोनावायरस से संबंधित आंकड़े इस प्रकार थे...

• कुल केसेस 75 लाख 97 हजार • कुल क्लोज्ड केसेस 42 लाख 65 हजार, • कुल मृत्यु 4 लाख 23 हजार • कुल ठीक हुए 38 लाख 42 हजार

इसका मतलब है कि कुल क्लोज्ड केसेस में 9.98 प्रतिशत की मृत्यु हुई और 90% से अधिक लोगों ने कोरोनावायरस पर विजय प्राप्त की.

पर यह विजय किस प्रकार से प्राप्त हुई इसके आगे एक बड़ा प्रश्न चिन्ह है . सभी जानते हैं कि कोरोनावायरस की कोई दवा नहीं है. वैक्सीन इत्यादि बनने में भी अभी समय लगेगा . जो भी लोग कोरोनावायरस के संक्रमण से ठीक हुए हैं उसके पीछे उनकी स्वयं की इम्यूनिटी अर्थात रोग प्रतिरोधक क्षमता ही जिम्मेदार है.

इन आंकड़ों को गहराई से देखने पर यह भी पता चलता है कि जिन लोगों की मृत्यु हुई है वे अधिकतर किसी ना किसी बीमारी से ग्रसित थे और कुछ दवाईयां ले रहे थे. अर्थात उनकी इम्यूनिटी या रोग प्रतिरोधक क्षमता पहले ही काफी दबाव में थी अथवा वे धूम्रपान, मदिरापान या किसी अन्य नशे के आदी थे, या उनका वजन बहुत अधिक था.

इस सब का निष्कर्ष यही निकलता है कि यदि व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली रोग औऱ प्रतिरोधक क्षमता अर्थात इम्यूनिटी को बढ़ाने के लिए कुछ किया गया होता तो मरने वालों की संख्या बहुत कम होती औऱ लोग बहुत जल्दी बिना किसी विशेष क्षति के ठीक हो गए होते. इससे यह बात उठती है कि कोरोनावायरस के इलाज को एक नई दृष्टि से देखने की आवश्यकता है और वह है एक समन्वयात्मक दृष्टि (integrative approach of treatment).

आयुर्वेद चिकित्सा को जोड़ा जाए

एलोपैथी का जो भी इलाज चल रहा है उसके साथ ही यदि आयुर्वेद की चिकित्सा को भी जोड़ा जाए तो इसमें लाभ बहुत अधिक होगा क्योंकि आयुर्वेद का आधार ही मानव शरीर की इम्युनिटी को बढ़ाकर उसे अपने आप को ठीक करने में मदद देना है.

आयुर्वेद का एक बहुत ही विशिष्ट अध्याय है रसायन चिकित्सा. रसायन का काम ही इम्यूनिटी बढ़ाकर शरीर के हर क्षेत्र में संतुलन यानी बैलेंस बनाना है और इसी बैलेंस के द्वारा शरीर में स्वास्थ्य की स्थापना होती है. महर्षि आयुर्वेद में महर्षि अमृत कलश नाम की औषधि लगभग 35 वर्ष पहले खोजी गई थी इसके प्रभाव को देखकर दुनिया भर के कई विशिष्ट यूनिवर्सिटीज औऱ रिसर्च संस्थानों का ध्यान इस ओर आकर्षित हुआ और उन्होंने इस पर कई प्रकार के अध्ययन किये. लगभग 50 से अधिक वैज्ञानिक अध्ययनों और परीक्षणों से पता चला कि महर्षि अमृत कलश विभिन्न जीवों में उनकी सुरक्षा प्रणाली यानी डिफेंस मेकैनिज्म और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है.

महर्षि आयुर्वेद के मुताबिक भारत के प्रतिष्ठित स्वास्थ्य संस्थानों जैसे ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज, नई दिल्ली और किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज, लखनऊ में भी 4 क्लिनिकल ट्रायल्स किए जा चुके हैं जिनमें पता चला कि महर्षि अमृत कलश कैंसर जैसे भयानक रोग के रोगियों की इम्युनिटी को बढ़ाकर कीमोथेरेपी के साइड इफेक्ट्स को कम करता है और इलाज की सफलता को बढ़ाता है. s.m.s. हॉस्पिटल जयपुर में की गई दो क्लिनिकल ट्रायल्स में यह पता चला कि महर्षि अमृत कलश हृदय रोग के मरीजों की इम्यूनिटी बढ़ाकर उन्हें स्वस्थ होने में सहायता करता है. तीन स्तरों पर करना होगा काम

महर्षि आयुर्वेद के मुताबिक इसकी प्रभावकारी औषधियां औऱ चिकित्सा कोरोनावायरस के इस संग्राम में तीन स्तरों पर काम कर सकती है 

  • पहला व्यक्ति की इम्युनिटी को बहुत अधिक बढ़ाकर उसमें संक्रमण की संभावना को ही कम किया जाए.
  • दूसरा यदि संक्रमण हो भी गया है तो भी उसकी इम्यूनिटी को बढ़ाकर उसे जल्दी से जल्दी ठीक होने में सहायता दी जाए
  • तीसरा संक्रमण से मुक्ति के बाद शरीर में जो भी क्षति हुई है उसे शीघ्राति शीघ्र ठीक करके व्यक्ति के सामान्य स्वास्थ्य को पुनर्स्थापित किया जाए .

आज बड़े बड़े वैज्ञानिक संस्थान कोरोनावायरस की वैक्सीन ढूंढने में लगे हुए हैं हो सकता है इससे लाभ भी हो पर यह भी संभव है कि कुछ वर्षों में एक नया वायरस किन्ही बिल्कुल अलग क्षमताओं के साथ पैदा होकर पूरी मानवता को एक बार फिर से झकझोर दे, ऐसा पहले कई बार हुआ भी है. वैज्ञानिक अपनी समझ के अनुसार इस वायरस पर केंद्रित होकर जो भी कर रहे हैं करें, पर आज समय की मांग है कि एक बहुत ही गंभीर प्रयास मानव केंद्रित होकर भी करना चाहिए ताकि व्यक्ति अपने जीवन के हर स्तर पर संतुलन लाकर पूर्ण स्वस्थ स्थिति में रहे और भविष्य में जो भी वायरस, बैक्टीरिया अथवा अन्य आपदाएं आती हैं उनका मुकाबला करके अपने आप को निर्विकार रख सके.

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