रिसर्च से पता चला है कि फाइजर की कोविड-19 वैक्सीन के दूसरे डोज में देरी कुछ बुजुर्ग मरीजों को दक्षिण अफ्रीकी कोरोना वायरस वैरिएन्ट के प्रति संवेदनशील छोड़ सकती है. कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों की लैब रिसर्च में देखा गया कि फाइजर की वैक्सीन का पहला डोज म्यूटेशन से लड़ने में काफी नहीं हो सकता.


कोरोना वायरस के दक्षिण अफ्रीकी वैरिएन्ट से नहीं मिलेगी सुरक्षा 


शोधकर्ताओं का कहना है कि वैक्सीन के एक सिंगल डोज से वायरस की नई किस्म को मारने के लिए मजबूत प्रयाप्त इम्यून रिस्पॉन्स पैदा नहीं हो सकता. एंटीबॉडी लेवल केवल सुरक्षात्मक प्रतीत होते हैं, लेकिन शोधकर्ताओं ने माना कि दक्षिण अफ्रीकी वैरिएन्ट पर वैक्सीन के अभी भी 'कम प्रभावी' होने की संभावना है. रिसर्च के मुताबिक, सिर्फ दूसरे डोज के बाद 80 साल से ज्यादा की उम्र के लोगों को मजबूत इम्यून रिस्पॉन्स मिलेगा.


शोधकर्ताओं ने कहा कि पहला डोज लगवा चुके 9.3 मिलियन लोगों को दूसरा डोज लेने से पहले तीन महीने में अभी भी कोरोना वायरस संक्रमण का खतरा है. स्वास्थ्य अधिकारियों ने जोर दिया है कि जिन लोगों ने सिर्फ पहला टीका लगवाया है, उन्हें सावधान रहना चाहिए क्योंकि दूसरे डोज तक सुरक्षा की भरपूर गारंटी नहीं हो सकती.


फाइजर की कोविड वैक्सीन के सिंगल डोज से बुजुर्ग सुरक्षित नहीं 


रिसर्च में ये बात सामने आई कि कोरोना वायरस की नई किस्म में E484K नामी म्यूटेशन होता है, तो ये कोरोना वायरस को मारने के लिए जरूरी एंटीबॉडीज की मात्रा को काफी हद तक बढ़ा देता है. E484K म्यूटेशन दक्षिण अफ्रीकी और ब्राजील के नए वैरिएंट की विशेषता है. कैम्ब्रिज के शोधकर्ताओं ने 26 लोगों का ब्लड सैंपल लिया गया, उनमें से 80 साल से ज्यादा की उम्र के 15 लोग फाइजर का पहला डोज ले चुके थे.


उनके ब्लड में एंटीबॉडीज थे जो कोरोना वायरस से लड़ने के लिए इम्यून सिस्टम के जरिए, प्राकृतिक संक्रमण के माध्यम से या टीकाकारण से बनाए जाते हैं. उन्होंने ब्लड सैंपल को ब्रिटिश और दक्षिण अफ्रीकी वैरिएन्ट्स के सिन्थेटिक संस्करण के खिलाफ जांचा और उनकी एंटीबॉडी रिस्पॉन्स की मॉनिटरिंग की. नतीजे से पता चला कि सभी वॉलेंटियर्स में एंटीबॉडीज ब्रिटिश वैरिएन्ट को मारने के लिए पर्याप्त थी. लेकिन जब E484K म्यूटेशन को जोड़ा गया, तो 'मूल' कोविड स्ट्रेन की तुलना में 10 गुना ज्यादा एंटीबॉडीज की जरूरत कोरोना वायरस को खत्म करने के लिए पड़ी.


शोधकर्ताओं ने बताया कि सात लोगों का एंटीबॉडीज लेवल इतना कम था कि पहले डोज के बाद वायरस को नहीं मारा जा सका और ये सभी लोग 80 साल से ज्यादा की उम्र के लोग थे. दूसरा डोज दिए जाने के तीन सप्ताह बाद उनका एंटीबॉडी लेवल उस स्तर को पहुंचा जिसने वायरस को मार दिया. शोधकर्ता रवि गुप्ता ने कहा, "हमारे काम से पता चलता है कि वैक्सीन E484K म्यूटेशन से निबटने में कम प्रभावी हो सकती है." वैज्ञानिकों ने खोज पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि अब 'ब्रिटेन के एक डोज रणनीति से अलग हटने का ठीक समय' है.


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