खाली सुपरमार्केट, पब जाने पर रोक और बड़े अस्पताल का निर्माण किसी डरावनी फिल्म जैसा दृश्य पेश करता है. लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि कोविड-19 की बीमारी वास्तव में किसी बुरे सपने से कम नहीं. 800 में आधे से ज्यादा वॉलेंटियर ने सपने में महामारी से जुड़ी भवायह तस्वीर सामने आने की बात मानी.


कोविड-19 ने लोगों के सपनों को किया प्रभावित


फिनलैंड के एक चौथाई प्रतिभागियों ने बताया कि उन्हें नींद में डरावने सपनों से बार-बार जूझना पड़ा. नींद पैटर्न में बदलाव का असर किसी से गले मिलना, भीड़भाड़ में फंसना, पार्टी से आनंद उठाना और वायरस से संक्रमित होना शामिल रहा. वैज्ञानिकों का मानना है कि सपने हमें महामारी के दौर में व्यवहार की सीख देते हैं. उनका कहना है कि नींद में सपनों का आना हमारे बदलते व्यवहार को मजबूत कर सकता है.


वैज्ञानिकों ने 28 मार्च से 15 अप्रैल के बीच प्रतिभागियों से हर सुबह अपने सपने बताने को कहा. गौरतलब है कि इस दौरान फिनलैंड में कोरोना संक्रमण रोकने के लिए राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन लगाया गया था. सपनों पर शोध के लिए वैज्ञानिकों ने आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस तकनीक की मदद ली. उनके सपने को जानकर ये समझने की कोशिश की गई क्या उन्हें बुरे सपने पहले की तुलना में ज्यादा आ रहे थे.


महामारी के दौर में बुरे सपने पहले से ज्यादा आए


शोधकर्ताओं का कहना है कि हम ये देखकर हैरान रह गए कि उन लोगों में कोविड-19 लॉकडाउन का बहुत बुरा असर हुआ. नतीजों से हमें पता चला कि मुश्किल हालात में देखे जानेवाले सपने से याद्दाश्त पर पड़नेवाले असर को समझा जा सकता है. शोध के लिए 3200 प्रतिभागियों के नींद और तनाव डेटा को इस्तेमाल किया गया. इसके अलावा इस दौरान 800 प्रतिभागियों के सपने का परीक्षण किया गया. शोध को ‘फ्रंटियर्स इन साइकोलोजी’ नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है.


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