मेलबर्न: वैज्ञानिक हाल के दिनों में सामने आई एक नयी स्थिति ‘लंबे कोविड’ को लेकर बेहद चिंतित हैं. कोविड मरीजों को लंबे समय तक इस बीमारी के लक्षणों से जूझना पड़ता है. रिसर्च से पता चलता है कि कम से कम 5-24 फीसद में तीन से चार महीने बाद तक इसके लक्षण बने रहते हैं. लंबे कोविड के जोखिम को अब उम्र या कोविड की बीमारी की प्रारंभिक गंभीरता से सीधे तौर पर जुड़ा हुआ नहीं माना जाता है. इसलिए कम उम्र के लोग, और शुरू में हल्के कोविड वाले लोगों में अभी भी लंबे-कोविड के लक्षण विकसित हो सकते हैं. कुछ लोगों में लंबे-कोविड लक्षण जल्दी शुरू होते हैं और बने रहते हैं, जबकि अन्य प्रारंभिक संक्रमण बीत जाने के बाद ठीक दिखाई देते हैं. इसके लक्षणों में अत्यधिक थकान और सांस लेने में आने वाली दिक्कतें शामिल हैं. लंबे कोविड पीड़ित लोग किसी चीज पर ध्यान केंद्रित करने और योजना बनाने जैसे कामों में कठिनाइयों का अनुभव करते हैं - जिन्हें ‘‘ब्रेन फॉग’’ के रूप में जाना जाता है. ऐसे में सवाल पैदा होता है कि कोविड दिमाग को कैसे प्रभावित करता है?


कोरोना वायरस हमारे दिमाग में कैसे पहुंचता है?


1918 की स्पैनिश फ्लू महामारी के रिकॉर्ड में, मनोभ्रंश, बोध की गिरावट, और शारीरिक गतिविधियों तथा नींद में कठिनाइयों के मामले बहुत अधिक हैं. 2002 में सार्स के प्रकोप और 2012 में मर्स के प्रकोप के साक्ष्य बताते हैं कि इन संक्रमणों के कारण लगभग 15-20 फीसद ठीक हो चुके लोगों को अवसाद, चिंता, स्मृति कठिनाइयों और थकान का अनुभव हुआ. इस बात का कोई निर्णायक सबूत नहीं है कि कोविड-19 का कारण बननेवाला कोरोना वायरस रक्त मस्तिष्क बाधा में प्रवेश कर सकता है, जो आमतौर पर मस्तिष्क को रक्तप्रवाह से प्रवेश करने वाले बड़े और खतरनाक रक्त-जनित अणुओं से बचाता है. लेकिन आंकड़े बता रहे हैं कि ये हमारी नाक को मस्तिष्क से जोड़ने वाली तंत्रिकाओं के जरिए मस्तिष्क तक पहुंच बना सकता है. शोधकर्ताओं को इस पर संदेह है क्योंकि कई संक्रमित वयस्कों में, वायरस की आनुवंशिक सामग्री नाक के उस हिस्से में पाई गई थी जो गंध की प्रक्रिया शुरू करती है. 


कोविड मस्तिष्क को कैसे नुकसान पहुंचाता है?


ये नाक संवेदी कोशिकाएं मस्तिष्क के एक क्षेत्र से जुड़ती हैं जिसे ‘‘लिम्बिक सिस्टम’’ कहा जाता है, जो भावना, सीखने और स्मृति में शामिल होता है. जून में ऑनलाइन प्री-प्रिंट के रूप में जारी ब्रिटेन स्थित एक रिसर्च में, शोधकर्ताओं ने कोविड के संपर्क में आने से पहले और बाद में लोगों के मस्तिष्क की छवियों की तुलना की. उन्होंने पाया कि संक्रमित लोगों में गैर संक्रमित लोगों के मुकाबले लिम्बिक सिस्टम के कुछ हिस्सों का आकार कम हो गया. ये भविष्य में मस्तिष्क की बीमारियों के प्रति संवेदनशील होने का संकेत दे सकता है और लंबे-कोविड लक्षणों के उभरने में भूमिका निभा सकता है. कोविड अप्रत्यक्ष रूप से मस्तिष्क को भी प्रभावित कर सकता है.


वायरस रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचा सकता है और या तो रक्तस्राव या इसमें रुकावट का कारण बन सकता है जिसके नतीजे में मस्तिष्क को रक्त, ऑक्सीजन, या पोषक तत्वों की आपूर्ति में रुकावट होती है, विशेष रूप से समस्या समाधान के लिए जिम्मेदार क्षेत्रों में. वायरस प्रतिरक्षा प्रणाली को भी सक्रिय करता है, और कुछ लोगों में, ये विषाक्त अणुओं के उत्पादन को बढ़ाता है जो मस्तिष्क के कार्य को कम कर सकते हैं. हालांकि इस पर रिसर्च जारी है, लेकिन आंत के कार्य को नियंत्रित करने वाली नसों पर कोविड के प्रभावों को भी देखना चाहिए. ये पाचन और आंत बैक्टीरिया के स्वास्थ्य और संरचना को प्रभावित कर सकता है, जो मस्तिष्क के कार्य को प्रभावित करने के लिए जाने जाते हैं. वायरस पिट्यूटरी ग्रंथि के कार्य को भी प्रभावित कर सकता है.


पिट्यूटरी ग्रंथि, जिसे अक्सर ‘‘मास्टर ग्रंथि’’ के रूप में जाना जाता है, हार्मोन उत्पादन को नियंत्रित करता है. इसमें कोर्टिसोल शामिल है, जो तनाव के प्रति हमारी प्रतिक्रिया को नियंत्रित करता है. जब कोर्टिसोल की कमी होती है, तो ये दीर्घकालिक थकान में योगदान दे सकता है. विकलांगता के वैश्विक बोझ में मस्तिष्क विकारों के पहले से ही बड़े हिस्से को देखते हुए, सार्वजनिक स्वास्थ्य पर लंबे समय तक कोविड का संभावित प्रभाव बहुत अधिक है. लंबे कोविड के बारे में अहम सवालों के जवाबों का पता अभी तक नहीं चला है, जिसमें बीमारी कैसे पकड़ लेती है, जोखिम कारक क्या हो सकते हैं और परिणामों की सीमा, साथ ही इसका इलाज करने का सर्वोत्तम तरीका भी शामिल है. सवाल भले ही कितने ही हों, एक बात तो तय है कि हमें कोविड के मामलों को बढ़ने से रोकने का हर संभव प्रयास करते रहना होगा, जिसमें जल्द से जल्द कोविड वैक्सीन लगवाना शामिल है. 


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