Covid-19: वैक्सीन के चैलेंज परीक्षण में शामिल होने वाले 18 साल के वॉलेंटियर ने खुलासा किया है कि उन्हें दो सप्ताह तक लॉक अप में रखा जाएगा. गौरतलब है कि ब्रिटेन दुनिया का पहला कोविड-19 मानव चैलेंज ट्रायल जनवरी में करने जा रहा है. जिसमें स्वस्थ वॉलेंटियर को जानबूझ कर कोरोना वायरस से संक्रमित किया जाएगा. इसका मकसद प्रयोगात्मक वैक्सीन के असर का पता लगाना होता है.
चैलेंज ट्रायल के वॉलेंटियर ने किया खुलासा
परीक्षण में शामिल वॉलेंटियर अलास्टेयर फ्रेजर उरकुहर्ट ने बीबीसी रेडियो के एक कार्यकर्म में बताया, “मैं परीक्षण में शामिल होने के लिए इसलिए तैयार हो गया क्योंकि ये हजारों लोगों की जिंदगी बचाने के लिए जरूरी है और जल्द ही दुनिया को महामारी से बाहर निकाल सकता है.” हालांकि अभी ये साफ नहीं है कि किस वैक्सीन का परीक्षण किया जाएगा.
चैलेंज ट्रायल में शामिल वॉलेंटियर को पूर्वी लंदन के एक क्लीनिक में दो सप्ताह तक रखकर मुआयना किया जाएगा. इस दौरान परीक्षण में शामिल 100-200 वॉलेंटियर में से कुछ को थोड़ा ज्यादा समय तक वायरस के लक्षण में कमी नहीं आने पर बंद रहना पड़ सकता है. वॉलेंटियर ने कहा, “मैं क्लीनिक में परीक्षण के जारी रहने तक रहूंगा. जाहिर है परीक्षण का हिस्सा नहीं बननेवाले को हम संक्रमित नहीं कर सकते. इसलिए हर वॉलेंटियर को जैव नियंत्रण में रहने की जरूरत होगी.”
कोविड वैक्सीन के लिए पहली बार चैलेंज ट्रायल
चैंलेज ट्रायल आम तौर पर वैज्ञानिक वैक्सीन विकसित करने के लिए करते हैं. मलेरिया, टायफायड और फ्लू में चैलेंज ट्रायल किया गया है. लेकिन कोरोना वायरस के मामूली लक्षण वाले लोगों के इलाज में अब पहली बार किया जा रहा है. 18वीं सदी में एडवर्ड जेनेर ने आठ साल के लड़के पर पहली बार चैलेंज ट्रायल किया था. उन्होंने वॉलेंटियर को काउपॉक्स वायरस की वैक्सीन लगाकर उसे चेचक से संक्रमित किया. उनका मकसद ये पता लगाना था कि क्या बच्चे को बीमारी से सुरक्षा मिली या नहीं.
महामारी की शुरुआत में चैलेंज परीक्षण को कोरोना वायरस के लिए नजरअंदाज किया जाता रहा है. वैज्ञानिकों को वॉलेंटियर पर वायरस के संक्रमण से होनेवाले प्रभाव का डर था. लेकिन शोध से पता चला है कि चैलेंज ट्रायल कोरोना वायरस पर भी किया जा सकता है. बताया जाता है कि युवा और स्वस्थ वॉलेंटियर को कोरोना वायरस संक्रमण से मौत का खतरा ‘बहुत कम’ होता है. प्रोफेसर पीटर होर्बी कहते हैं, “चैलेंज ट्रायल का लंबा इतिहास रहा है. इससे विज्ञान को आगे बढ़ाने और बीमारी की बेहतर समझ पैदा करने में मदद मिलती है. इसके अलावा तेजी से वैक्सीन का निर्माण भी किया जा सकता है.”