क्या डिप्रेशन के खतरे की पहचान ह्रदय गति में होनेवाले उतार चढ़ाव को मापकर किया जा सकता है?
डिप्रेशन के लक्षण की पहचान की 90 फीसद सटीक जानकारी दी जा सकती है.इसके लिए हृदय गति में उतार-चढ़ाव को 24 घंटे तक मापने की जरूरत होगी.
दिल धड़कने की रफ्तार को माप कर ये पता लगाया जा सकता है कि कोई शख्स डिप्रेशन से ग्रसित है या नहीं. व्यावहारिक अर्थ में इसका मतलब हुआ कि डॉक्टरों को संभावित डिप्रेशन की वक्त से पहले चेतावनी मिल जाएगी.
24 घंटे के दौरान दिल की धड़कनों में उतार चढ़ाव को बुनियाद बनाते हुए डिप्रेशन होने या न होने की पहचान 90 फीसद सही की जा सकती है. गोयटे यूनिवर्सिटी फ्रंकफर्ट के डॉक्टर कारमन शेविक और उनकी टीम ने खुलासा किया है.उन्होंने पता लगाया है कि दिल की धड़कन का संबंध डिप्रेशन से है. डिप्रेशन दिल की धड़कनों की रफ्तार पर प्रभाव डालता है. लेकिन इस बात की जानकारी नहीं है कि ये किस तरह से होता है. ताजा अध्ययन में इसी बात पर शोध किया गया है.
डिप्रेशन की पहचान हृदय गति में बदलाव को मापकर होगा?
32 वॉलेंटियर पर किए गए शोध में 16 स्वस्थ जबकि 16 गंभीर रूप से तनावग्रस्त ऐसे मरीज थे जिन्हें डिप्रेशन की आम दवाओं से फायदा नहीं हो रहा था. वॉलेंटियर में धड़कन पर 24 घंटे नजर रखने के लिए हाथ में ईसीजी उपकरण इस्तेमाल किए गए जबकि ये सिलसिला चार दिन और तीन रात तक जारी रहा. उन्हें डिप्रेशन के मरीजों को राहत पहुंचानेवाली दवा केटामाइन (Ketamine) दी गई. अगले चरण में डेटा का परीक्षण आर्टिफिशियल एंटेलीजेंस से लैस एक खास प्रोग्राम पर किया गया. परीक्षण से जहां ये पता चला कि डिप्रेशन में दिल की धड़कन स्वस्थ लोगों की तुलना में थोड़ी ज्यादा होती है वहीं इसका भी खुलासा हुआ कि डिप्रेशन की तीव्रता जितनी ज्यादा होगी 24 घंटों के दौरान दिल की धड़कन में उतना ही बदलाव आएगा.
वैज्ञानिकों ने नतीजे पर गंभीरतापूर्वक विचार करने को कहा
विशेषज्ञों के मुताबिक नतीजे से ये भी पता चलता है कि धड़कनों की मदद से डिप्रेशन की पहचान, लक्षण जाहिर होने से पहले की जा सकती है. शोध के दौरान धड़कन के जरिए डिप्रेशन की पहचान का ये तरीका 90 फीसद दुरुस्त साबित हुआ. मगर इसके बावजूद डॉक्टर कारमन शेविक ने चेताया है कि ये सिर्फ शुरुआती स्तर का अध्ययन है जिसके नतीजे बेहतर और सटीक बनाने के लिए गहराई से शोध की जरूरत है. अतिरिक्त शोध के बाद ही ये कहा जा सकेगा कि डिप्रेशन की पहचान में धड़कनों के उतार-चढ़ाव या कमी-ज्यादती पर किस हद तक निर्भर रहा जा सकता है.
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