मेडिकल कॉफ्रेंस में महिलाओं की कम भागीदारी का क्या है कारण, रिसर्च में हुआ खुलासा
शोधकर्ताओं का कहना है कि कॉफ्रेंस के डिजाइन में छोटे बदलावों से महिला भागीदारी में बड़े बदलाव लाए जा सकते हैं. मेडिकल कॉफ्रेंस में लैंगिक संतुलन के बावजूद महिलाओं की कम भागीदारी होती है.
मेडिकल कॉफ्रेंस में लैंगिक संतुलन के बावजूद महिलाओं की कम भागीदारी होती है. ये खुलासा प्रतिष्ठित पत्रिका लांसेट में प्रकाशित एक रिसर्च से हुआ है. शोधकर्ताओं ने पाया कि लैंगिक प्रतिनिधित्व के बावजूद मेडिकल और वैज्ञानिक कॉफ्रेंस की कार्यवाहियों में महिलाओं के भाग लेने की संभावना कम है. हालांकि, सम्मेलन के डिजाइन और बदलाव से महिला भागीदारी में काफी सुधार हुआ. शोधकर्ताओं ने ताजा विश्लेषण को एंडोक्रिनोलॉजी फोर सोसायटी के सालाना राष्ट्रीय कॉफ्रेंस के आधार पर पूरा किया. उन्होंने पाया कि कॉफ्रेंस का आयोजन चिकित्सकों और शोधकर्ताओं के पेशेवराना क्षमता को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है.
लैंगिक संतुलन के बावजूद महिलाओं की कॉफ्रेंस में कम भागीदारी
रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले कुछ दशकों के दौरान लगभग आधे मेडिकल छात्रों में महिलाएं शामिल हैं, बावजूद इसके मेडिकल फैकल्टी के पदों पर उनका प्रतिनिधित्व साफ तौर पर कम है. इम्पीरियल कॉलेज लंदन की वरिष्ठ शोधकर्ता डॉक्टर विक्टोरिया सलेम ने टिप्पणी की कि इस असंतुलन को अब तक ठीक कर लिया जाना चाहिए था. उन्होंने कहा, "सिस्टम में बहुत अधिक जड़ता है जिसे रोल मॉडल के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. अगर हमारे पास ज्यादा महिलाएं बात करनेवाली, प्रवक्ता और विशेषज्ञों के तौर पर काम करनेवाली नहीं होंगी, तो हम अगली पीढी को प्रेरित करने नहीं जा रहे हैं."
पुरुषों के सवाल 2 घंटे 54 मिनट, महिलाओं के सवाल 56 मिनट चले
सलेम और उनके सहयोगियों ने 2017 और 2018 में आयोजित एंडोक्रिनोलॉजी फोर सोसायटी के विभिन्न सत्रों से आए सवालों और टिप्पणियों का विश्लेषण किया. हर साल, सम्मेलन में करीब 1,000 प्रतिनिधियों ने भाग लिया- जिनमें से लगभग आधी महिलाएं थीं. दोनों सत्रों की कार्यवाहियों में पुरुषों के सवाल दो घंटे 54 मिनट चले जबकि महिलाओं के सवाल 56 मिनट चले. लैंगिक संतुलन के बावजूद शोधकर्ताओं ने पाया कि महिलाओं ने कॉफ्रेंस में छोटे और कम सवाल पूछे, करीब 5 सवाल या टिप्पणियों में से मात्र एक महिलाओं की तरफ से आया. सलेम ने कहा, "इससे पता चलता है पुरुषों और महिलाओं के व्यवहार में अभी भी स्पष्ट फर्क है, चाहे इसका कारण कुछ भी हो, सोशल इंजीनियरिंग हो या जीव विज्ञान. हमें इस मामले को जरूर हल करना चाहिए और उन माध्यमों को शामिल करने पर ध्यान देना चाहिए जो विज्ञान के लिए समान पहुंच को सुनिश्चित करते हैं."
कॉफ्रेंस में विविधता, समानता लाने के लिए शोधकर्ता प्रयास में जुटे
2018 में शोधकर्ताओं ने कॉफ्रेंस में महिला भागीदारी को संतुलित करने के उद्देश्य से प्रयास किए. उन्होंने कॉफ्रेंस के आयोजकों के साथ ज्यादा महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ाने को सुनिश्चित करने पर काम किया. उन्होंने पाया कि महिलाओं के सत्र की अध्यक्षता करने से महिला दर्शकों के सवालों में बढ़ोतरी हुई. उसके अलावा, अगर कोई महिला सबसे पहले सवाल पूछती, तो एक महिला की तरफ से बाद की भागीदारी की संभावना बहुत बार बढ़ गई. रिसर्च के नतीजों से पता चलता है कि मामूली बदलाव का बड़ा असर हो सकता है. उसके आधार पर शोधकर्ता कॉफ्रेंसों को और अधिक सुलभ बनाने के लिए बदलाव करने जा रहे हैं, जिससे विविधता और समानता लाई जा सके.
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