नई दिल्ली: मौजूदा महामारी में सेहत व स्वास्थ्य को महत्व देना होगा. यह खासकर तब बहुत जरूरी है, जब आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर है या फिर आपको किसी बीमारी का इतिहास है. अस्थमा इन्हीं में से एक है. अस्थमा बिगड़ने का मुख्य कारण श्वास की नली में वायरल संक्रमण होना है. अस्थमा के जोखिम वाले लोगों या फिर मौजूदा अस्थमा पीड़ितों के लिए सांस की नली में वायरल संक्रमण बहुत घातक हो सकते हैं. एक अनुमान के अनुसार सामान्य या फिर गंभीर अस्थमा के मरीजों को बीमारी के और ज्यादा गंभीर होने का खतरा ज्यादा होता है.
भारत में लगभग 9.3 करोड़ लोग सांस की क्रोनिक समस्या से पीड़ित हैं. इनमें से लगभग 3.7 करोड़ एस्थमेटिक हैं. अस्थमा के वैश्विक भार में भारत का हिस्सा केवल 11.1 प्रतिशत है, जबकि विश्व में अस्थमा से होने वाली मौतों में भारत का हिस्सा 42 प्रतिशत है, जिस वजह से भारत दुनिया की अस्थमा कैपिटल बन गया है.
अपोलो अस्पताल के कंसलटेंट स्पेशलिस्ट (चेस्ट मेडिसिन, क्रिटिकल केयर मेडिसिन एंड स्लीप मेडिसिन) डॉक्टर रोहित करोली के अनुसार, "अस्थमा पर सांस के वायरस के प्रभाव के चलते यह बहुत आवश्यक हो गया है कि मौजूदा समय में अस्थमा पीड़ित बहुत ज्यादा सावधानी बरतें. वायरस निर्मित समस्याओं की रोकथाम के लिए अस्थमा को अच्छी तरह से नियंत्रित करना बहुत आवश्यक है."
मौजूदा महामारी के समय में किसी बीमारी के उपचार के लिए आपातकालीन विभाग या अत्यावश्यक इलाज के लिए जाना पड़ता है, जहां पर मरीज को किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने का जोखिम भी ज्यादा होता है.
गाजियाबाद के नरेंदर मोहन हॉस्पीटल के सीनियर कंसलटेंट (चेस्ट स्पेशलिस्ट) डॉक्टर मनीष त्रिपाठी के अनुसार, "अस्थमा पीड़ितों को अस्थमा नियंत्रित रखने के लिए स्टेरॉयड इन्हेलर्स दिए जाते हैं. अस्थमा पीड़ितों को कभी भी अपने कॉर्टिकोस्टेरॉयड इन्हेलर तब तक लेना बंद नहीं करना चाहिए, जब तक कोई मेडिकल प्रोफेशनल उनसे ऐसा करने को न कहे. स्टेरॉयड इन्हेलर का प्रयोग बंद करने से मरीज को संक्रमण का ज्यादा खतरा हो जाएगा क्योंकि इससे अस्थमा का नियंत्रण खराब हो जाता है."
यदि अस्थमा नियंत्रण में है, तो हॉस्पिटल या क्लिनिक जाने से बचें. आप टेलीफोन पर अपने डॉक्टर से संपर्क कर सकते हैं और उन्हें अपनी प्रगति के बारे में बता सकते हैं. एस्थमेटिक मरीजों को बिना योजना के क्लिनिक नहीं जाना चाहिए. सामान्य से गंभीर अस्थमा से पीड़ित लोगों को वायरल संक्रमण से बहुत ज्यादा बीमारी पड़ने का खतरा रहता है. ये संक्रमण आपकी सांस की नली (नाक, गला, फेफड़ों) को प्रभावित करते हैं, अस्थमा का अटैक लाते हैं और इनकी वजह से निमोनिया या एक्यूट रेस्पिरेटरी डिजीज हो सकती है.
एक्यूट लक्षणों से आराम के लिए स्पेसर के साथ एमडीआई का उपयोग किया जा सकता है. नेबुलाईजर्स का उपयोग करने से बचें क्योंकि उनमें वायरल संक्रमण फैलने का खतरा बहुत ज्यादा होता है. नेबुलाईजर्स एयरोसोल्स बनाते हैं, जो संक्रमित ड्रॉपलेट्स को कई मीटर तक फैला सकते हैं.
आपका डॉक्टर आपको इन विधियों के बारे में परामर्श देगा. सुनिश्चित करें कि आपके पास नॉन-प्रेस्क्रिप्शन दवाईयों एवं सप्लाई का 30 दिनों का स्टॉक हो, ताकि यदि लंबे समय तक आपको घर में रहने की जरूरत पड़े, तो आपको कोई परेशानी न हो.
बता दें कि भारत में कोरोना वायरस से पीड़ित मरीजों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है. देश में कोरोना के मरीजों की संख्या 585493 हो गई है. वहीं, इस संक्रमण की चपेट में आने से अब तक 17400 लोगों की मौत हो चुकी है. जबकि 347978 लोग ठीक हो गए हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक इस संक्रमण का खतरा उन लोगों को अधिक है जो पहले से किसी बीमारी से पीड़ित हैं. ऐसे में उन व्यक्तियों को अपनी सेहत का खास ध्यान रखने की जरूरत है.
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