डॉ उमाशंकर तिवारी के शोध कार्य पर प्रकाशित पुस्तक 'पंत की काव्यभाषा का अध्ययन' एक बहुत ही उपयोगी और गहरे अध्ययन पर आधारित पुस्तक है. इस पुस्तक के प्रथम अध्याय में भाषा के महत्व और काव्य के उपादान रूपों में काव्य-भाषा की विशिष्टता, लोकभाषा, गद्य भाषा से काव्य-भाषा का अन्तर, काव्य-भाषा के घटक तत्व, शब्द चयन, विन्यास और काव्य-भाषा की विशिष्ट प्रवृति को देखा गया है. काव्य-भाषा के और भाषा के अन्तर और उसके सहवर्ती रूपों को या काव्य-भाषा के मूलाधारों की चर्चा करते हुए काव्य-भाषा के घटक तत्व शब्द, अर्थ, शब्द शक्तियां, अप्रस्तुत विधान की गुणात्मकता की पहचान करते हुए विस्तृत विवेचना की गई है. 


इस पुस्तक के दूसरे अध्याय में प्रमुख रूप से छायावादी संवेदना और भाषा दृष्टि को अध्ययन का केंद्र बनाकर छायावादी काव्य-भाषा के क्रमिक विकास को रेखांकित किया गया है, उसके समूचे विकास की पहचान की गई है. विषय के विवेचन को वैज्ञानिक आधार पर संधि युगीन रचनाकारों की भाषिक चेतना और संघर्ष को देखा गया है. इस तरह खड़ी बोली काव्य-भाषा के विकास की गति का सम्यक निरीक्षण किया जा सका है.


पुस्तक के जरिए की गई ये कोशिश
इस पुस्तक के तीसरे अध्याय में कवि की काव्य-भाषा के क्रमिक विकास की समीक्षा की गई है. पंत के काव्य व्यक्तित्व की व्यापकता का आंकलन किया गया है. क्योंकि पंत छायावाद के उपरान्त सभी काव्य आंदोलनों को झेलकर आगे बढ़े हैं. अतः उनकी काव्य-भाषा के परिवर्तित आधारों को अधिक जीवन्त रूप में पकड़ने की कोशिश भी की गई है. इस पुस्तक के चौथे अध्याय में भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से रूपात्मक अध्ययन के साथ-साथ शब्द भण्डार का अध्ययन भी समाहित है. इस अध्याय में कवि के द्वारा निर्मित नये-नये शब्दों के निर्माण की क्षमता का पता लगाया गया है.


काव्य-भाषा का किया गया विवेचन
इस पुस्तक के पांचवें अध्याय में उल्लेखनीय शब्दों का आवृत्ति परक अध्ययन है. इसमें शब्दों की प्रयुक्त संख्या आवृत्ति कृतिवार दी गई है. इस अध्याय में रचनाकार के द्वारा किया गया शब्दों का वर्ग परिवर्तन उल्लेखनीय है. इस पुस्तक के छठे अध्याय में शैली परक अध्ययन के अन्तर्गत भाषिक समृद्धि के साथ-साथ कलात्मक दृष्टि का उद्घाटन किया गया है. इसके अन्तर्गत कवि के द्वारा विविध दृष्टियों को ग्रहण करने की प्रवृत्ति और सफलता पर विचार किया गया है. शैलीगत रूपों में भाषिक चयन, अतिक्रमण, नव प्रवर्तन इत्यादि पर भी विचार किया गया है. इसके सिवाय, अलंकार, प्रतीक बिम्ब इत्यादि के आधार पर विवेच्य कवि की काव्य-भाषा का विवेचन किया गया है.


यहां से खरीद सकते हैं किताब
इस पुस्तक के अंतिम अध्याय में पूर्वगत अध्यायों की अध्ययन सामग्री से निकलने वाले निष्कर्षों को सामने रखकर कवि की काव्य-भाषा की उपलब्धि को एकान्वित रूप से रखा गया है. आप अगर साहित्य के विद्यार्थी, शोधार्थी अथवा साहित्य में रूचि रखते हैं तो आपके लिए यह पुस्तक काफी उपयोगी साबित होने वाली है. पंत की काव्य भाषा को समझाने के साथ-साथ यह पुस्तक भाषा विज्ञान के भी कई पहलुओं पर प्रकाश डालती है. अगर आप 'पंत की काव्यभाषा का अध्ययन' पुस्तक को खरीदना चाहते हैं तो के. एल. पचौरी प्रकाशन से इसे ऑर्डर कर सकते हैं. इसके अलावा यह पुस्तक अमेजन और फ्लिपकार्ट पर भी उपलब्ध है.


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