कोविड-19 से उबर चुके मरीजों का प्लाजमा दुनिया भर में कोरोना वायरस के गंभीर मामलों के इलाज की उम्मीद में इस्तेमाल किया जा रहा है. अर्जेन्टीना में मानव परीक्षण के डेटा के मुताबिक, कोरोना वायरस को हरा चुके लोगों के ब्लड प्लाजमा के इस्तेमाल से निमोनिया के गंभीर मरीजों को बहुत कम फायदा पहुंचा.


प्लाज्मा थेरेपी  निमोनिया में नहीं आई काम


प्लाजमा थेरेपी में कोविड-19 से ठीक हुए मरीजों का प्लाज्मा लेकर वायरस से संक्रमित गंभीर मरीजों को दिया जाता है. इस पद्धति को 'कॉनवैलीसेंट प्लाज्मा थेरेपी' के नाम से जाना जाता है. मानव परीक्षण में पाया गया कि प्लाज्मा थेरेपी से मरीजों की सेहत नहीं सुधरी और न ही वायरस के कारण होनेवाली मौत का जोखिम कम हुआ. प्लाज्मा थेरेपी पर किए गए शोध को दि न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसीन में प्रकाशित किया गया है.


अर्जेन्टीना के शोधकर्ताओं ने किया खुलासा


शोध के मुताबिक, प्लाज्मा थेरेपी के असर का सबूत सीमित पाया गया. मानव परीक्षण में 333 अस्पताल में भर्ती मरीजों को शामिल किया गया. सभी मरीज गंभीर रूप से  निमोनिया का शिकार थे. उन्हें बेतरतीब ढंग से प्लाज्मा या प्लेसेबो दिया गया. 30 दिनों में शोधकर्ताओं को मरीजों के स्वास्थ्य और लक्षणों में कोई अंतर नहीं दिखा और न ही मृत्यु दर में कोई बदलाव आया.


प्लाज्मा लेनेवाले ग्रुप का मृत्यु दर 11 फीसद था और प्लेसेबो वाले ग्रुप में मृत्यु दर 11.4 फीसद रहा. इस तरह के अंतर सांख्यिकीय रूप से महत्वहीन रहे. इससे पहले अक्टूबर में भारत में किए गए एक शोध में बताया गया था कि प्लाज्मा थेरेपी से कोविड-19 रोगियों के लक्षणों में सुधार देखा गया. शोधकर्ताओं का कहना था कि प्लाज्मा थेरेपी के बाद मरीजों के सांस लेने और थकान की समस्या में कमी आई. हालांकि, मौत का जोखिम और गंभीर लक्षण कम नहीं हुआ.


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