(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
क्या वायु प्रदूषण से गर्भवती महिलाओं के बच्चों में होता है अस्थमा का खतरा? रिसर्च में चौंकानेवाला खुलासा
वैज्ञानिकों ने वायु प्रदूषण के अति-सूक्ष्म कणों का सामना करनेवाली प्रेगनेन्ट महिलाओं पर रिसर्च किया. नतीजे से पता चला कि वायु प्रदूषण के अति-सूक्ष्म कणों का सामना करनेवाली महिलाओं से जन्मे 18 फीसद बच्चों में अस्थमा विकसित हुआ.
प्रेगनेन्सी के दौरान वायु प्रदूषण का सामना करनेवाली महिलाओं के बच्चों में अस्थमा विकसित होने का बहुत ज्यादा खतरा होता है. रिसर्च में प्रदूषण के अति-सूक्ष्ण कणों का मूल्यांकन किया गया, जो बड़े कणों से ज्यादा जहरीले समझे जाते हैं. अति-सूक्ष्ण कणों में गाड़ियां और लकड़ी के चूल्हे स्रोत के तौर पर शामिल होते हैं, और प्रदूषण के अति-सूक्ष्म कण औसत इंसानी बाल की चौड़ाई से छोटे होते हैं. शोधकर्ताओं ने महिलाओं और उनके बच्चों पर रिसर्च कर ये समझना चाहा कि क्या प्रेगनेन्सी के दौरान वायु प्रदूषण के अति-सूक्ष्म कण मां से शिशुओं तक ट्रांसफर हो सकते हैं.
क्या वायु प्रदूषण के अति-सूक्ष्ण कण शिशुओं के लिए हैं खतरा?
शोधकर्ताओं का कहना है कि ये अति सूक्ष्म-कण प्रेगनेन्ट महिलाओं के लंग्स के जरिए रक्त प्रवाह में सूजन का कारण बनते हैं, जबकि प्लेसेंटा के जरिए भ्रूण के प्रवाह में पहुंच सकते हैं. उन्होंने कहा कि रिसर्च सबूत की दिशा में शुरुआती महत्वपूर्ण कदम है, जो अति सूक्ष्ण कणों की बेहतर मॉनिटरिंग और रोकथाम की अगुवाई कर सकते हैं. माउंट सिनाई, न्यूयॉर्क में आईकन स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ताओं ने कहा, "बचपन का अस्थमा दुनिया में बड़ी समस्या है और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की वजह से वैश्विक वायु प्रदूषण के कण में वृद्धि होने की संभावना है." उन्होंने बताया कि भ्रूण को विशेष तौर पर ऑक्सीडेटिव तनाव का खतरा होता है. भ्रूण का विकास बहुत संवेदनशील मामला है और ऑक्सीडेटिव तनाव समस्या को बढ़ाता है.
अति-सूक्ष्ण कणों से प्रभावित मां के 18 फीसद बच्चों में अस्थमा
ये पहले ही स्पष्ट हो चुका है कि वायु प्रदूषण से वक्त से पहले जन्म और जन्म के वक्त शिशु के कम वजन का खतरा बढ़ाता है और 2019 के रिसर्च में बताया गया कि वायु प्रदूषण प्रेगनेन्ट महिलाओं के लिए उतना ही खराब है जितना धूम्रपान मिसकैरेज का खतरा बढ़ाता है. अमेरिकन जर्नल ऑफ रिस्पेरेटरी एंड क्लीनिकल केयर मेडिसीन में नई रिसर्च का प्रकाशन हुआ है. बोस्टन में रिसर्च के दौरान 400 महिलाओं और उनके बच्चों का प्रेगनेन्सी से लेकर जन्म के बाद मूल्यांकन किया गया. तीन साल बाद शोधकर्ताओं ने ये जानना चाहा कि क्या उनके बच्चों में अस्थमा की पहचान हुई.
वैज्ञानिकों ने मां की उम्र और मोटापा समेत कई पहलुओं पर विचार किया. उन्होंने अन्य वायु प्रदूषकों को भी ध्यान में रखा. नतीजे से पता चला कि इन अति सूक्ष्म कणों का स्वतंत्र प्रभाव होता है और वाय प्रदूषण के अति सूक्ष्म कणों का सामना करनेवाली महिलाओं के 18 फीसद बच्चों में अस्थमा विकसित हुआ. हालांकि, खोज के नतीजे अस्पष्ट हैं, लेकिन शोधकर्ताओं का सुझाव है कि प्रदूषण शरीर संबंधी नियामक सिस्टम जैसे न्यूरोक्राइन और इम्यून के काम में छेड़छाड़ कर सकता है.
लो बोन डेंसिटी के कारण महिलाओं में बढ़ रहा हियरिंग लॉस का खतरा, स्टडी में हुआ खुलासा
Coronavirus: कोविड से रिकवरी के बाद फेफड़ों को रखें स्वस्थ, 6 महीने बाद भी हो सकती है समस्या