फैशन का है जलवा! तभी तो खाने से ज्यादा कपड़ों पर पैसे खर्च कर रहे हैं लोग, हैरान कर देगी ये डिटेल
आज के समय में टिप-टॉप दिखना सबसे जरूरी है. इसी को फॉलो करते हुए लोगों ने खाने से ज्यादा कपड़ों पर ज्यादा पैसा खर्च करना शुरू कर दिया. भारत सरकार की एक हालिया रिपोर्ट में इसका खुलासा किया गया है.
हमने अक्सर सुना है कि जीवन जीने के लिए रोटी, कपड़ा और मकान यह तीन चीज़ ही महत्वपूर्ण हैं. लेकिन भारत सरकार (एनएसएसओ) की एक रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि भारत में व्यक्ति अपने कपड़ों पर ज्यादा खर्च कर रहे हैं. इसका मतलब यह है कि लोग अपने सेहत से ज्यादा अपने लुक्स और फैशन को तवज्जो दे रहे हैं. "सांख्यिकी विभाग और कार्यक्रम कार्यान्वयन विभाग (एनएसएसओ) मंत्रालय ने अगस्त 2022 से जुलाई 2023 के दौरान घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (एचसीईएस) आयोजित किया. इस सर्वे रिपोर्ट का उद्देश्य देश के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के एमपीसीई यानी घरेलू उपभोक्ताओं द्वार हर महीने किए जाने वाले खर्चों का अनुमान तैयार करना है।
रिपोर्ट में क्या कहा गया?
इसमें कहा गया है कि लोग पीने की चीजें और पैश्चराइज्ड फूड पर गेहूं, चावल और दालों जैसे अनाज की तुलना में ज्यादा खर्च कर रहे हैं. रिपोर्ट में पाया गया कि 2018 की तुलना में 2023 में, कपड़ों पर औसत घरेलू खर्च 20% बढ़ गया है, जबकि खाने पर खर्च केवल 10% ही बढ़ा है.
ऐसा लगता है कि उपभोक्ताओं के लिए रोटी, कपड़ा और मकान के बजाय कपड़ा, रोटी और फिर मकान जरूरी हो गया है. इसे लेकर कुछ जानकारों का कहना है कि कोविड के बाद की दुनिया में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लोगों की दिलचस्पी बढ़ गई है. इतना ही नहीं सोशल मीडिया ने कई लोगों को प्रभावशाली भी बनाया है, जिसमें कपड़ों का अहम योगदान है. इससे न केवल इंटरनेशनल ब्रांड्स बल्कि भारतीय लोकल ब्रांड्स भी काफी लोकप्रिय हो गए हैं. कपड़ों के अलावा गहने और एक्सेसरीज का क्रेज भी काफी बढ़ गया है. वहीं, कपड़ों की बढ़ती डिमांड पर्यावरण के लिए भी काफी हानिकारक साबित हो रही है. इसलिए कई सेलेब्स कपड़ों को रिपीट और रीयूज करने पर जोर देने लगे हैं.
लोगों ने कपड़ों पर ज्यादा खर्च करना इसलिए भी शुरू कर दिया है क्योंकि यह लोगों को सस्ते भी मिलने लगे हैं. आपने भी कई इंफ्लूएंसर्स को दिल्ली के सरोजिनी और लाजपत मार्केट से सस्ते में शॉपिंग करते हुए देखा गया. यह कपड़े महज कुछ ही इस्तेमाल के लायक होते हैं. इसके बाद लोग उन्हें फेक कर नए कपड़े खरीदने पहुंच जाते हैं. इससे उन्हें हर बार नई-नई वैरायटी के कपड़े पहनने को जरूर मिल जाते हैं, लेकिन ऐसा करने से धरती पर कपड़ों का बोझ बढ़ता जाता है.