First Braiding Studio: जटाएं साधुओं की सबसे बड़ी पहचान होती है. साफ शब्दों में कहें तो साधुओं को अपनी जटाओं से बहुत प्रेम होता है, जटाएं उनका श्रृंगार है, लेकिन इसकी देखभाल करना काफी कठिन है.साधु अपनी जटाओं को काली मिट्टी से धोते हैं, फिर सूरज की रोशनी में सुखाते हैं


हालांकि कुछ ऐसे भी साधू हैं जिन्हें जटाएं को सवारने में काफी कठिनाई का सामना करना पड़ता है, साधू बाबा सूई धागों से जटा को गूथ कर रखते हैं... तो आप समझ ही गए होंगे कि इसके देखरेख में काफी जतन करना पड़ता है लेकिन अब साधु बाबा अपनी जटाओं को आसानी से संभाल सकते हैं. दरअसल मध्यप्रदेश के भोपाल में देश का सबसे पहला ब्रेडिंग स्टूडियो खुला है जहां साधु संतों की जटाएं मुफ्त में संवारी जाती है.


करिश्मा ने स्टूडियो खोलने का मन बनाया


इस ब्रेडिंग स्टूडियो को करिश्मा शर्मा नाम की एक महिला चलाती हैं. आर्टिस्ट करिश्मा शर्मा के मन में ब्रेडिंग स्टूडियो खोलने का विचार तब आया जब उन्होंने खुद जटा की लट रखना शुरू किया वो बताती हैं कि लट रखने के बाद उन्होंने महसूस किया कि इसका रखरखाव कितना ज्यादा कठिन होता है. इसके बाद वह काशी, उज्जैन सहित कई तीर्थ स्थलों में साधु बाबाओं से मिली और उस दौरान देखा कि उनकी जताएं टूटी हुई थी. इसके अलावा कई बाबाओं ने सुई धागे से जटाओं को गूथ रखा था. ये सब परेशानी देखते हुए करिश्मा ने स्टूडियो खोलने का मन बनाया ताकि साधुओं की जटाय सवारी जाए.


नि:शुल्क सेवाएं देती हैं करिश्मा


ब्रेडिंग स्टूडियो खुले हुए अब करीब डेढ़ साल हो चुके हैं और इस अंतराल में यहां पर करीब 40 से अधिक साधु-संत पहुंच चुके हैं. आर्टिस्ट करिश्मा शर्मा ने कुछ साधुओं की जटाएं उनके स्थान पर जाकर ही सवारी, जिसके बाद उनके संपर्क में जितने लोगों को जटाओं में दिक्कत होती वो इस स्टूडियो में भेज देते हैं. इस काम के लिए करिश्मा कोई भी पैसा नहीं लेतीं. साधुओं की तरफ से जो भी पैसा दिया जाता है वो उसे आशीर्वाद मान कर रख लेती हैं.


इस स्थिति में साधू बाबा कटवाते हैं बाल


आपको ये भी बता दें कि साधु संत अपनी जटाओं को नदियों की रेत से धोते हैं. जटा-जूट रखने वाले साधु अपनी जटाओं में पारा रखते हैं जिसकी वजह से बालों में दुर्गंध नहीं आता. साधु अपनी जटाओं को अलग-अलग तरीकों से सजाते हैं. कुछ फूलों से सजाते हैं, तो कुछ रुद्राक्ष ओं से तो कुछ मोतियों की मालाओं से जटाओं का श्रृंगार करते हैं. साधु सन्यासी बाबा ताउम्र बाल ना कटवाने के लिए कटिबद्ध होते हैं, लेकिन एक परिस्थिति होती है जब वह अपने बाल कटवाने के लिए विवश होते हैं. यह स्थिति होती है जटल सन्यासी के गुरु का देहावसान. साधु बाबा गुरु की मृत्यु होने पर ही अपने बाल कटवाते हैं.



ये भी पढ़ें: क्या होती है रोबोटिक सर्जरी, किन रोगों में होता है इसका इस्तेमाल, भारत में कितना खर्च? जानें इससे जुड़ी हर जरूरी बात