दुनिया में एड्स को पहली बार मात देनेवाला शख्स कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी से पीड़ित हो गया है. विदेशी समाचार एजेंसी के मुताबिक, अमेरिका के कैलोफोर्निया में रहनेवाला 54 वर्षीय टिमोथी रेय ब्राउन ल्यूकेमिया से जूझ रहा है. ल्यूकेमिया ब्लड कैंसर का एक प्रकार है. 12 साल पहले ल्यूकेमिया के इलाज के बाद उसकी जिंदगी पटरी पर आ गई. मगर पिछले साल उसे पता चला कि कैंसर की एक बार फिर पुनरावृत्ति हो गई है.


एड्स को हराया फिर कैंसर की चपेट में आया


टिमोथी रेय ब्राउन में एचआईवी संक्रमण का लक्षण अभी नहीं है. 90 की दहाई में उसके अंदर एड्स और 2006 में ल्यूकेमिया की पुष्टि हुई थी. ल्यूकेमिया और एचआईवी से छुटकारे के लिए उसका दो बार बोन मैरो ट्रांस्पलांट किया गया. डॉक्टरों ने डोनर की कोशिकाओं का टिमोथी के बोन मैरो ट्रांस्पलांट में इस्तेमाल किया. उसका कहना है कि इस दौरान डोनर से उसके अंदर एचआईवी वायरस का ट्रांसमिशन हुआ. लेकिन सफल इलाज के बाद एड्स जैसी जानलेवा बीमारी को उसने हरा दिया.


बताया जाता है कि टिमोथी रेय ब्राउन दुनिया का ऐसा पहला इंसान है जिसने एड्स जैसी लाइलाज बीमारी को शिकस्त दी. उसने कहा, "मेरे मामले ने उम्मीद का दरवाजा खोल दिया क्योंकि इससे पहले ऐसी उम्मीद नहीं की जाती थी. अब तक लाइलाज समझी जानेवाली बीमारी का सफल इलाज ढूंढने के लिए डॉक्टरों और वैज्ञानिकों को प्रेरित किया." लेकिन दुर्भाग्य से अब कैंसर के कारण उसकी जान जानेवाली है. ब्राउन ने बताया कि कैंसर उसके शरीर में तेजी से फैल रहा है.


ल्यूकेमिया के कारण चंद दिन की बची मोहलत


90 की दहाई में अमेरिकी नागरिक टिमोथी रेय ब्राउन बर्लिने में बतौर अनुवादक काम कर रहे थे. जहां उनके अंदर एचआईवी संक्रमण की पुष्टि हुई. 2006 में डॉक्टरों ने बताया कि उसे ल्यूकेमिया हो गया है. बर्लिन यूनिवर्सिटी के ब्लड कैंसर विशेषज्ञ डॉक्टर गेरो ह्यूटर का मानना है कि बोन मैरो ट्रांसप्लांट ल्यूकेमिया को हराने का बेहतरीन जरिया था. कैलोफोर्निया यूनिवर्सिटी में एड्स विशेषज्ञ डॉक्टर स्टीवेन डीक्स ने कहा, "टिमोथी ने साबित किया कि एचआईवी का इलाज किया जा सकता है.
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