Chole Bhatura History: छोले-भटूरे को भारत में कौन लाया? इस वजह से आज इतना फेमस हो गया
Chole Bhatura History: आपने कभी न कभी छोले भटूरे जरूर खाए होंगे, लेकिन क्या आपको मालूम है कि इसका इतिहास क्या है और कैसे ये इतना पॉपुलर हुआ? आइए जानते हैं....
History Of Chole Bhatura: दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, यूपी समेत पूरे उत्तर भारत में छोले भटूरे बहुत पॉपुलर हैं. इस स्वादिष्ट भोजन का एक लंबा और दिलचस्प इतिहास है, जिसका इतिहास कई सदियों तक फैला हुआ है. छोले भटूरे की जड़ें मध्यपूर्व में भी मिलती हैं, जहां चना मसाला नामक एक ऐसा ही भोजन काफी पॉपुलर हुआ करता था. चना मसाला पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान जैसे देशों में एक पॉपुलर स्ट्रीट फूड है. भारत में इसका छोले भटूरे वाला वर्जन पॉपुलर है.
क्या है छोले भटूरे का इतिहास?
चना मसाला एक और वर्जन भी है, जिसमें छोले को मसालों के मिश्रण में पकाया जाता है और आम तौर पर एक फ्लैटब्रेड के साथ परोसा जाता है. प्राचीन काल में व्यापार मार्गों के जरिए भारत और दुनिया के अलग-अलग हिस्सों के बीच व्यापार शुरू हुआ. इस दौरान ही चना मसाला ने अन्य मसालों और अन्य लजीज पकवानों के साथ भारत में एंट्री की. कहा जाता है कि मुगल शासकों द्वारा चना मसाला को भारतीय उपमहाद्वीप में लेकर आया गया.
मुगलों द्वारा लाए गए खाने में फारसी, तुर्की और भारतीय स्वाद का मिश्रण था. हालांकि, छोले भटूरे से जुड़ी एक और कहानी भी है. कहा जाता है कि 1947 में विभाजन के बाद पेशोरी लाल लांबा नाम के सज्जन दिल्ली आए और उन्होंने कनॉट प्लेस में फेमस क्वालिटी रेस्तरां को स्थापित किया. वह अपने साथ छोले की रेसिपी भी लेकर आए थे. इस तरह स्वादिष्ट छोटे दिल्ली और भारत पहुंच गए.
दिल्ली कैसे पहुंचे छोले भटूरे?
ऐसा माना जाता है कि यह खमीरी रोटी या कहें भटूरे पंजाबी रसोइयों द्वारा तैयार की गई थी. ये पंजाबी रसोइये भरवां पकवान तैयार करने में एक्सपर्ट होने के तौर पर जाने जाते थे. कहा जाता है कि सीता राम नाम के एक पंजाबी सज्जन 1947 के विभाजन के दौरान अपने परिवार के साथ पश्चिम पंजाब से चले और दिल्ली पहुंचे. यहां उन्होंने दिल्ली के पहाड़गंज में अपनी दुकान 'सीता राम दीवान चंद' खोली.
दुकान खोलने के बाद उन्होंने और उनके बेटे दीवान चंद ने पंजाबी छोले के साथ-साथ लगभग 12 आने में भटूरा नामक खमीरी रोटी बेचना शुरू किया. पंजाबी छोले पहले ही दिल्ली पहुंच चुके थे और वह अपने मसालेदार स्वाद के लिए जाने जाते थे. इस तरह छोले और भटूरे का कॉम्बिनेशन शुरू हुआ, जो आज पूरे उत्तर भारत में खाया जाता है.
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