Same Sex Marriages: इन 29 देशों में है समलैंगिक विवाह की मंजूरी, अब भारत में बहस शुरू
केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट में समलैंगिक विवाह की अनुमित देने का विरोध किया है.दिल्ली हाईकोर्ट में समलैंगिक विवाह मामले की अगली सुनवाई 21 अक्टूबर को होगी.
भारत में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिए एक बार फिर चर्चा चल पड़ी है. समलैंगिक विवाह को सेम सेक्स मैरिज भी कहते हैं जिसमें एक जेंडर वाले दो लोग आपस में शादी करते हैं, जैसे दो लड़कियां और दो लड़के आपस में शादी करेंगे तो इसे समलैंगिक विवाह कहा जाएगा. भारत में अभी समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता नहीं मिली है.
इस साल कोस्टा रिका में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता मिल जाने के बाद अब दुनिया में 29 देशों में समलैंगिक विवाह की अनुमति है. समलैंगिक विवाह को अनुमति देने वाला पहला देश नीदरलैंड है जहां साल 2000 में इसे मान्यता दी गई थी. समलैंगिक विवाह को मंजूरी देने वाले अधितकर यूरोपीय और दक्षिण अमेरिकी देश हैं.
अगर एशियाई महाद्वीप के बार में बात करें तो सिर्फ ताइवान में समलैंगिक विवाह को मंजूरी मिली है. इस देश में 2019 में कानून बनाकर समलैंगिक जोड़ों को शादी करने की इजाजत दी थी. पिछले एक दशक में एलजीबीटी समुदाय के अधिकारों को लेकर कई देशों ने अपने यहां कानून में बदलाव किया है. आयरलैंड में तो 2015 में हुए ऐतिहासिक मतदान में 62 फीसद लोगों ने समलैंगिक शादियों को मान्यता देने के लिए संविधान में संशोधन के पक्ष में मतदान किया था.
केंद्र ने हाई कोर्ट में कहा- समलैंगिक शादी को न हमारा कानून, न मूल्य और न समाज मान्यता देता है
इन 29 देशों में समलैंगिक विवाह को मिल चुकी है मंजूरी
नीदरलैंड (2000), बेल्जियम (2003), कनाडा (2005), स्पेन (2005), साउथ अफ्रीका (2006), नार्वे (2008), स्वीडन (2009), अर्जेंटीना (2010), पुर्तगाल (2010), आइसलैंड (2010), डेनमार्क (2012), उरुग्वे (2013), ब्राजील (2012), न्यूजीलैंड (2013), इंग्लैंड और वेल्स (2013), फ्रांस (2013), लक्जमबर्ग (2014), स्कॉटलैंड (2014), अमेरिका-2015, आयरलैंड-2015, फिनलैंड-2015, ग्रीनलैंड-2015, कोलंबिया-2016, माल्टा-2017, ऑस्ट्रेलिया-2017, जर्मनी-2017, ऑस्ट्रिया-2019 ताइवान-2019, इक्वाडोर-2019, नार्दन आयरलैंड-2019, कोस्टारिका-2020
भारत में समलैंगिक संबंध अपराध के दायरे से बाहर
दो साल पहले तक भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में समलैंगिकता को अपराध माना गया था. आईपीसी की धारा 377 के मुताबिक, जो कोई भी किसी पुरुष, महिला या पशु के साथ अप्राकृतिक संबंध बनाता है तो इस अपराध के लिए उसे 10 वर्ष की सजा या आजीवन कारावास का प्रावधान रखा गया था. 6 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ऐतिहातिक फैसले में समलैंगिकता को अपराध मानने से तो इनकार कर दिया. सर्वोच्च अदालत ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटा दिया. फैसले के अनुसार आपसी सहमति से दो वयस्कों के बीच बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अपराध नहीं माना जाएगा.
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