नई दिल्लीः गुड़ी पड़वा को हिन्दू नववर्ष, वर्ष प्रतिपदा, उगादि, नवसंवत्सर और युगादि भी कहा जाता है. इस साल 18 मार्च को चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा है. आज हम आपको बता रहे हैं गुडी पड़वा का क्या महत्व है. इसे कैसे सेलिब्रेट किया जाता है और देशभर में किन जगहों पर खासतौर पर मनाया जाता है. साथ ही हम आपको ये भी बताएंगे गुडी़ पड़वा को लेकर क्या-क्या मान्यताएं हैं.


गुडी पड़वा के अलग-अलग नाम -
गुडी पड़वा को संस्कृत में चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के नाम से जाना जाता है. गुडी पड़वा हर साल चैत्र महीने के पहले दिन मनाया जाता है. हिन्दू कैलेंडर के अनुसार गुड़ी पड़वा के दिन हिंदु नववर्ष का आरंभ होता है. महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा को बहुत खास तरीके से मनाया जाता है. इस दिन लोग घर के आंगन में गुडी रखते हैं. गोवा और केरल में कोंकणी समुदाय इसे ‘संवत्सर पड़वो’के नाम से मनाता है. कर्नाटक में गुडी पड़वा को युगाड़ी पर्व के नाम से मनाया जाता है. आन्ध्र प्रदेश और तेलंगाना में इसे उगाड़ी नाम से मनाते हैं. कश्मीरी हिंदु इस दिन को ‘नवरेह’ के तौर पर मनाते हैं वहीं मणिपुर में इस दिन को सजिबु नोंगमा पानबा या मेइतेई चेइराओबा के नाम से सेलिब्रेट किया जाता है. गुड़ी पड़वा के दिन से ही चैत्र नवरात्रि भी शुरू हो जाते हैं.


कैसे करते हैं सेलिब्रेट-
हिन्दु गुड़ी पड़वा के दिन घर के गेट पर गुड़ी लगाते हैं और घर के दरवाजों पर आम के पत्तों से बंदनवार सजाते हैं. ये बंदनवार घर में सुख-समृद्धि और खुशियों का प्रतीक है.


गुडी पड़वा से जुड़ी पौराणिक कथाएं-
हर त्यो़हार की भांति गुडी पड़वा को मनाने के पीछे भी कुछ पौराणिक कथाएं हैं. एक कथा के अनुसार, गुड़ी पड़वा को निर्माण का सिद्धांत के तौर पर मनाते हैं. ऐसा माना जाता है कि इस दिन इसी दिन भगवान राम ने रावण की लंका को जलाकर उसे पराजित किया था और वे अयोध्या़ लौटे थे.


एक अन्य कथानुसार, इस दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया था और इसी दिन से मानव जीवन की शुरूआत हुई थी. इस दिन सभी प्राणियों की पूजा की जाती है.


एक और मान्यता के अनुसार ये भी माना जाता है कि गुडी पड़वा के दिन ही महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने पंचांग की रचना की थी जिसमें सूर्योदय से सूर्यास्त और दिन, महीने सभी शामिल थे. यानि हिन्दू पंचांग की शुरूआत भी इसी दिन होती है.


एक मान्यता ये भी है कि इस दिन भगवान राम ने बाली के अत्याचार से प्रजा को मुक्ति दिलवाई थी. इसलिए लोगों ने उत्सव मनाकर गुडी को घर के आंगन में रखना शुरू किया था.


शुभ मुहूर्तों में से एक-
सालभर में हिन्दुओं के सबसे बड़े साढ़े तीन शुभ मुहूर्तों में से एक गुड़ी पड़वा को माना जाता है. गुड़ी पड़वा, अक्षय तृतीया, दशहरा और दीवाली, दीवाली को आधा मुहूर्त माना जाता है.


गुड़ी पड़वा के पूरन पोली का महत्व-
महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा को धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन यहां पूरन पोली या मीठी रोटी बनाई जाती है. पूरन पोली बनाते समय उसमें गुड़, नमक, नीम के फूल, इमली और कच्चा आम मिलाया जाता है. पूरन पोनी जीवन में होने वाले खट्टे-मीठे अनुभवों को चखने का प्रतीक है.


गुड़ी पड़वा पर नीम खाने को माना जाता है खास-
गुड़ी पड़वा के दिन खासतौर पर नीम की दातुन या नीम की पत्तियां खाई जाती हैं. साथ ही प्रसाद के रूप में भी नीम और शक्कर मिलती है. दरअसल, नीम बीमारियों को दूर करने का प्रतीक है. साथ कडुवा होने के कारण नीम सभी कडवाहट को दूर कर सकारात्मक करता है. ये भी माना जाता है कि तरक्की के रास्ते पर जाने वाले को जीवन में 'कडुए घूंट' पीने ही पड़ते हैं. साथ ही जीवन में सुखों के साथ दुख भी झेलने पड़ते हैं नीम उसका प्रतीक भी है.


गुड़ी पड़वा के दिन पूजा-आराधना-
इस दिन सूर्य की उपासना के साथ ही निरोगी जीवन, घर में सुख- समृद्धि और पवित्र आचरण की प्रार्थना की जाती है. प्रार्थना के बाद घर के आंगन में गुडी सजाई जाती है. लोग इस दिन नए कपड़े पहनते हैं और शक्कर से बने खिलौनों की माला पहनते हैं. पूरनपोली और श्रीखंड का नैवेद्य चढ़ा कर नवरात्रि यानि नवदुर्गा, श्रीराम जी और हनुमान जी आराधना की जाती है. इसके साथ ही सुंदरकांड, रामरक्षास्तोत्र और देवी भगवती के मंत्रों का जाप किया जाता है.