हीमोफीलिया एक दुर्लभ स्थिति होती है जिसमें खून ठीक ढंग से नहीं जमता है. ये ज्यादातर पुरुषों को प्रभावित करती है. उसके बारे में लोगों को बहुत कम जानकारी है. ब्लीडिंग उस वक्त घातक हो सकती है जब महत्वपूर्ण अंग जैसे दिमाग के अंदर हो जाए. जब आपको चोट लगती है और जख्मों से खून बहने लगता है, तब आप जानते हैं कि ब्लीडिंग कुछ देर बाद रुक जाएगी. ब्लीडिंग रुक जाती है क्योंकि खून जख्म पर जमने लगता है और यही आदर्श है जो हर शख्स युवा, बुजुर्ग के साथ होता है.


हमारा खून जमता है और ये ठीक होने का शुरुआत होता है. लेकिन अगर हमें लगातार खून बहता रहे और खून का जमाव नहीं हो? तब, ये अत्यधिक खून की कमी वजह बनेगा और हीमोफीलिया की स्थिति में ले जाएगा. ये दुर्लभ बीमारी है और इलाज योग्य हो सकती है लेकिन आम तौर से ज्यादातर मामलों में इलाज नहीं है. जख्म, चोट, घाव या दांत में चोट से अत्यधिक बाहरी ब्लीडिंग हो सकती है.


हीमोफीलिया के तीन प्रकार हैं
हीमोफीलिया के तीन प्रकार ए, बी और सी हैं. इसका निर्धारण थक्के के जोखिम को समझते हुए किया जाता है जो एक शख्स में नहीं होता है. बीमारी में खून उतना नहीं जमता है जितना जमना चाहिए. सामान्य तौर पर ये अनुवांशिक मुसीबत होती है. उसके साथ एक शख्स जन्म लेता है.


हीमोफीलिया इलाज योग्य नहीं है
हीमोफीलिया इलाज योग्य नहीं है लेकिन स्थिति को नियंत्रित किया जा सकता है और उचित और लंबे सुरक्षात्मक इलाज के बाद लोग सामान्य जिंदगी जी सकते हैं. हीमोफीलिया का प्रकार सी ए और बी की तुलना में कम गंभीर होता है. टाइप सी प्रकार का हीमोफीलिया पुरुषों और महिलाओं को समान रूप से प्रभावित करता है. लड़कियां इस बीमारी की बड़े पैमाने पर वाहक नहीं होती हैं. शुरुआती जिंदगी में बीमारी का पता चल जाता है. कई मामले जन्म के एक महीने बाद पाए जाते हैं जबकि सामान्य मामले वास्तव में 18 महीने तक देखे जा सकते हैं.


लक्षण और साइड-इफेक्ट्स
हीमोफीलिया का नतीजा किडनी की बीमारी, दिल की बीमारी, जोड़ दर्द, मांसपेशी के दर्द और कमजोरी की शक्ल में सामने आ सकता है. उसे शाही बीमारी भी समझा जाता है. महिलाएं बहुत ज्यादा इस बीमारी से प्रभावित नहीं हो सकतीं लेकिन उस बीमारी की वाहक हो सकती हैं. एक महिला जिसके पिता को ये स्थिति होता है, वो उसे अपने बेटे में पास कर सकती है और अगर उसे बेटी है, वो फैलानेवाली हो सकती है.


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