इंसान एक 'सोशल एनिमल' यानि सामाजिक प्राणी है. ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि इंसान अकेला नहीं रह सकता है. जिस तरीक से इंसान को हवा, पानी, खाना और पोषण की जरूरत पड़ती है. ठीक उसी तरह की इंसान को हमेशा दूसरे इंसान की जरूरत पड़ती है. जो इंसान अकेले रहते हैं उन्हें कई तरह की शारीरिक नुकसान और दिक्कतें भी उठानी पड़ती है. ऑस्ट्रिया के 'विएना यूनिवर्सिटी' और ब्रिटेन के 'कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी' के रिसर्चर के मुताबिक आठ घंटे का अकेलापन इंसान के अंदर की पॉजिटिव एनर्जी को कम करती है. साथ ही आठ घंटे बिना खाना खाएं जितना शरीर थक जाता है. उतनी ही देर आठ घंटे अकेले रहने में थकावट होती है.
विएना यूनिवर्सिटी' और ब्रिटेन के 'कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी' के रिसर्चर के मुताबिक
ऑस्ट्रिया के 'विएना यूनिवर्सिटी' और ब्रिटेन के 'कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी'की एक खास टीम ने इस बात को प्रूफ करने के लिए लैब से लेकर फिल्ड वर्क तक एक चीज जो काफी ज्यादा ध्यान खींचा वह यह था कि जो लोग अकेले रहते हैं और जो लोग ज्यादा लोगों की कंपनी में रहते हैं. वह अकेले रहने वाले लोग के मुकाबले जल्दी प्रभावित हो जाते हैं. शरीर में एनर्जी की कमी होती है और यह होमोस्टैटिक प्रतिक्रिया में परिवर्तन के कारण होता है. जो इंसान सोशल नहीं है और अगर उसे अचानक से बहुत लोगों के बीच में छोड़ दिया जाए तो वह अजीब सा व्यवहार करने लगता है.
खाने की कमी और अकेलापन से शरीर में एनर्जी की होती है कमी
लैब में हुए रिसर्च के मुताबिक सामाजिक अलगाव और भोजन के अभाव के बीच एक खास तरह की सामानताएं पाई गई हैं. रिसर्च के मुताबिक ऑस्ट्रिया में वियना विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिक एना स्टिजोविक और पॉल फोर्ब्स कहते हैं कि दोनों ही मामलों में काफी ज्यादा थकान और शरीर में एनर्जी का अभाव लगता है. जो काफी ज्यादा हैरान कर देने वाली बात है. शरीर में अगर खाने की कमी हो जाए तो सच में एनर्जी बिल्कुल खत्म हो जाती है.
यह रिसर्च 30 महिलाओं के ऊपर किया गया है
लैब में हुए रिसर्च में 30 महिला स्वयंसेवकों को 3 दिनों तक आठ-आठ घंटे रिसर्च की गई है. इन महिला स्वयंसेवकों को एक दिन अकेले और एक दिन बिना खाए रखा गया. फिर इन्हें खाना दिया गया लेकिन अकेले रखा गया. इन महिलाओं में तनाव, मनोदशा और थकान साफ देखने को मिली. जबकि हार्ट बीट और लार वाले कोर्टिसोल लेवल काफी बढ़े हुए नजर आ रहे थे. इस रिसर्च को सही अंजाम तक पहुंचाने के लिए ऑस्ट्रिया, इटली या जर्मनी में रहने वाले 87 प्रतिभागियों को इसमें शामिल किया गया था.अप्रैल और मई 2020 के बीच COVID-19 लॉकडाउन को मापदंडो को पूरी तरह से माना गया था. इसमें शामिल लोगों ने कम से कम आठ घंटे अलगाव में बिताए थे, और उन्हें स्मार्टफोन के जरिए सवालों के जवाब देने के लिए कहा गया था. लैब टेस्ट में पूछे सवाल के हिसाब से ऐप पर जवाब देने होते थे. इससे उनके तनाव, मूड पर और थकान को भी मापा जा रहा था. अकेलेपन के कारण मोटापा भी बढ़ता है. साथ ही शारीरिक नुकसान ज्यादा होती है. सामाजिक रूप से अलग रहने के कारण अकाल मृत्यु का खतरा भी काफी ज्यादा रहता है. वहीं कुछ लोग अकेले रहना काफी ज्यादा पसंद करते हैं.
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