नई दिल्ली: तिरुवनंतपुरम में एक नौ साल की बच्ची का रक्त का कैंसर यानि ल्यूकेमिया का इलाज चल रहा था. ट्रीटमेंट के दौरान बच्ची की कई बार कीमोथेरेपी भी हो चुकी थी. लेकिन हाल ही में इस बच्ची के पेरेंट्स को पता चला कि बच्ची को ब्लड ट्रांसफ्यूजन के दौरान एचआईवी हो गया है. इस खबर ने बच्ची के पेरेंट्स को बिल्कुल तोड़ दिया है.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जब बच्ची को केरला के रिजनल कैंसर सेंटर में दाखिल करवाया गया था तो बच्ची के एचआईवी के सभी टेस्ट नेगेटिव आए थे. लेकिन 6 महीने बाद बच्ची के एचआईवी टेस्ट पॉजिटिव आए हैं.
बच्ची के पिता का कहना था कि हम यहां बच्ची का कैंसर का इलाज करवाने आए थे लेकिन एचआईवी लेकर जा रहे हैं.
उन्होंने बताया कि मेरी बच्ची को इससे पहले कभी भी, कहीं भी ब्लड ट्रांसफ्यूजन नहीं हुआ. यहां तक कि डॉक्टर्स ने बच्ची को एडमिट करते हुए भी सभी टेस्ट किए थे. बच्ची के 43 वर्षीय पिता ने बताया कि अब डॉक्टर ने उनकी बेटी को मेडिकल कॉलेज फॉर द एचआईवी में ट्रीटमेंट के लिए रेफर कर दिया है ताकि बच्ची 10 से 15 साल तक सामान्य जीवन जी सके.
हालांकि सरकार ने इस मामले को संज्ञान में लिया है और इस पर इंवेस्टिगेशन करने को भी कहा है.
वहीं रिजनल कैंसर सेंटर के डायरेक्टर पॉल सिबेस्टयिन ने किसी भी ब्लड डोनर के एचआईवी से ग्रसित होने की बात को नकारा है.
डॉक्टर पॉल का ये भी कहना है कि ये सही है कि जब बच्ची का एडमिट किया गया था तो बच्ची को एड्स नहीं था. कैंसर ट्रीटमेंट के दौरान बच्ची को 49 ब्लड यूनिट भी चढ़ाया गया. हमने सभी डोनर्स की हिस्ट्री चैक कर ली है. लेकिन ये भी संभव है कि एड्स पीडित डोनर जब ब्लड देता है तो उसके टेस्ट नेगेटिव आएं हो. कई बार ऐसे मामलों में एड्स के बारे में पता चलने में 1 से 3 महीने तक का वक्त लग जाता है.
इंडिया स्पेंड के सूचना के अधिकार के जरिए जुटाए गए आंकडे बताते हैं कि ब्लड ट्रांसफ्यूजन के दौरान 2009 से 2016 के बीच अब तक 14000 एचआईवी पॉजिटिव मामले सामने आ चुके हैं.