नईदिल्ली: दुनियाभर के लोग मच्छर जनित बीमारी मलेरिया से हर साल प्रभावित होते हैं. लेकिन लगता है कि अब जल्द ही इस बीमारी से छुटकारा मिल जाएगा. जी हां, मलेरिया वैक्सीन का इंसानों पर हुआ न्यू् ट्रायल पास हो गया है.


इस वैक्सीन के नहीं है साइड इफेक्ट-
दिलचस्प बात ये है कि इस बार का इंसानों पर हुआ ट्रायल काफी इफेक्टिव और सेफ पाया गया है. ये वैक्‍सीन खासतौर पर जेनेटिकली मोडिफाइड मलेरिया पैरासाइड के लिए तैयार किया गया है. फिलहाल ये पहला ट्रायल है.

कैसे किया गया ट्रायल-
इस ट्रायल को बनाने से पहले मलेरिया पैरासाइड को जेनिटिकली वीक किया गया ताकि उसका असर कम हो. इसके बाद 10 हेल्दी लोगों को ये दिया गया. इन लोगों को ये टीका कंट्रोल एन्वायरमेंट में इफेक्टिड मॉसकीटो के जरिए दिया गया. ट्रायल के दौरान जेनिटिकली मोडिफाइड पैरासाइड ने प्रतिभागियों के लीवर में मलेरिया पैरासाइड की ग्रोथ को रोक दिया.

कैसे फैलता है मलेरिया-
मलेरिया पैरासाइड पहले इंसान के लीवर को फिर उनके ब्लड को इंफेक्ट करता है. जब ब्लड पूरी तरह से इंफेक्टिड हो जाता है तो मलेरिया के सिम्टम्स सामने आने लगते हैं. ऐसे में प्रतिभागियों को जब वैक्सीन दिया गया तो जेनिटिकली मोडिफाइड पैरासाइड ने प्रतिभागियों के लीवर में मलेरिया के जीवाणओं को तो बढ़ने से रोका ही साथ ही ब्लड को भी इंफेक्टिड होने से रोका.

ट्रायल के नतीजे-
शोध के नतीजों में देखा गया कि टीके ने ना सिर्फ अच्छी तरह से अपना काम किया बल्कि इन प्रतिभागियों के इम्यून सिस्टम ने भी अच्छा रिस्पॉन्स दिया. यही ट्रायल चूहों पर किया गया तो चूहों को इस वैक्सीन ने मलेरिया से पूरी तरह से बचाया.

किसने तैयार किया ये टीका-
अमेरिका के सेंटर फॉर इन्फेक्सियस डिजीज रिसर्च के शोधकर्ताओं ने ये इस वैक्सीन को तैयार किया है. इस वैक्सीन को तैयार करने के दौरान मलेरिया पैरासाइड प्लाजमोडियम फैलिसिपैरम से तीन तरह के जीन को रिमूव किया गया. ये वो जीन हैं जो आमतौर पर लीवर को इंफेक्टिड करते हैं.

क्या कहते हैं एक्सपर्ट-  
इस शोध के प्रमुख शोधकर्ता सिबेस्टियन मिकोलैज्क का कहाना है कि ह्यूमन ट्रायल में मिली सफलता से जल्द ही मलेरिया वैक्सीन और प्रभावी तरीके से सामने होगी.

वहीं वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के जेम्स कबलिन का कहना है कि मलेरिया के इस नए वैक्सीन से दुनियाभर में मलेरिया से छुटकारा पाने में मदद मिलने की संभावना है. फिलहाल इस वैक्सीन के अभी और ट्रायल्स होने बाकी हैं.

ये रिसर्च जर्नल साइंस ट्रांजिशनल मेडिसिन में पब्लिश हुई थी.