न्यूयॉर्क: पार्किंसंस, हंटिंगटंस, अल्जाइमर और अमायोट्रॉफिक लेटरल स्क्लेरॉसिस (एएलएस) जैसी न्‍यूरोलोजिकल संबंधी खतरनाक बीमारियों का इफेक्टिव इलाज अब सिर्फ एक प्रोटीन में चेंजेसकर किया जा सकता है.

प्रोटीन का गलत तरीके से काम करना

हाल ही में एक रिसर्च के तहत शोधकर्ताओं ने ये पता लगाया है कि बीमारियां दिमाग में एक प्रोटीन के गलत तरीके से काम करने के कारण होती हैं. ये प्रोटीन गलत तरीके से फोल्ड होकर मसल्‍स सेल्‍स में जमा हो जाता है और अंतत: उसे खत्म कर देती हैं.

किसने की रिसर्च


ग्लैडस्टोन इस्टीट्यूट्स ऑफ कैलिफोर्निया के शोधकर्ताओं ने रिसर्च के दौरान बीमारी पैदा करने वाले प्रोटीन की कमी को पूरा करने के लिए एक अलग प्रोटीन (एनआरएफ2) का इस्तेमाल किया और कोशिका को बचाने में कामयाब रहे.

क्‍या कहते हैं एक्‍सपर्ट

ग्लैडस्टोन इंस्टीट्यूट के स्टीवन फिंकबिनर ने कहा कि हमने हंटिंगटंस डिजीज, पार्किंसन डिजीज और एएलएस में एनआरएफ2 प्रोटीन का इस्तेमाल किया और इन बीमारियों से निपटने में अभी तक की रिसर्च में ये सबसे इफेक्टिव रहा है.

कैसे की गई रिसर्च

शोधकर्ताओं ने पार्किसंस डिजीज के दो मॉडलों में एनआरएफ2 का इस्तेमाल किया. पहले में मसल्‍स सेल्‍स में पाए जाने वाले प्रोटीन एलआरआरके2 में म्यूटेशन (उत्परिवर्तन) हो गया था, दूसरा अल्फा-साइनूक्लिन में म्यूटेशन हो गया था.

एनआरएफ2 को एक्टिव कर शोधकर्ता एक्‍ट्रा मात्रा में एलआरआरके2 और अल्फा सायनुक्लिन का सफाया करने के लिए कोशिका में कई 'हाउस क्लीनिंग' कार्य प्रणाली को चालू करने में कामयाब रहे.

ग्लैड स्टोन इंस्टीट्यूट के शोधकर्ता गाइया स्कीबिंस्की ने कहा कि एनआरएफ2 जीन एक्सप्रेशन के पूरे प्रोग्राम का समन्वय करता है, लेकिन हम अब तक यह नहीं जानते थे कि प्रोटीन के स्तर को नियंत्रित करने में यह कितना महत्वपूर्ण है.