Abortion: भारत में अबॉर्शन की तीन कैटेगरी क्या कहती हैं? जानें अबॉर्शन करवाने का प्रोसीजर
Abortion Law In India: भारत में क्या है अबॉर्शन यानि गर्भपात से जुड़ा कानून. महिला कब और किन परिस्थितियों में अबॉर्शन का करवा सकती है. क्या अबॉर्शन कराना जुर्म है. जानिए इससे जुड़ी पूरी जानकारी.
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Abortion Procedure: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भारत में सभी महिलाओं को सुरक्षित और कानूनी गर्भपात कराने का अधिकार है. दरअसल, कुछ महीनों पहले जब अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने बुनियादी रूप से अपने देश में अबॉर्शन के संवैधानिक अधिकार को खत्म कर दिया था, लगभग उसी वक्त भारत में अबॉर्शन के एक केस ने सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा.
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक 24 हफ्ते की प्रेग्नेंट महिला के अबॉर्शन कराने की याचिका को खारिज कर दिया था. तब वह 25 वर्षीय प्रेग्नेंट महिला सुप्रीम कोर्ट पहुंची. सुप्रीम कोर्ट ने अबॉर्शन की परमिशन देते हुए कहा कि महिला अविवाहित है, इसलिए उसे अबॉर्शन कराने से रोका नहीं जा सकता है. आज की इस खबर में हम आपको भारत में अबॉर्शन के कानून के साथ अबॉर्शन कराने के प्रोसीजर के बारे में बताने जा रहे हैं.
भारत में अबॉर्शन कराने का कानून
"भारतीय अबॉर्शन लॉ इस बात में भेदभाव नहीं करता कि महिला शादीशुदा है या अविवाहित. अगर महिला वयस्क है (18 वर्ष से ऊपर है), तो ये उसका अधिकार है कि अगर वो चाहे तो अपनी अनवांटेड प्रेगनेंसी को खत्म कर सकती है. कानून किसी भी महिला को गर्भपात करवाने के लिए 24 हफ्ते तक की अनुमति देता है."
MTP ACT (1971) में हुए संशोधन
MTP ACT (1971) के अनुसार, भारत में अबॉर्शन कानूनी (legal) है. हालांकि इसे बाद में संशोधित किया गया है. महिला को MTP ACT का पालन करते हुए गर्भपात का अधिकार मिला है. भारत में पहले कुछ मामलों में 20 हफ्ते तक अबॉर्शन कराने की अनुमति थी, लेकिन 2021 में इस कानून में संशोधन के बाद ये समय सीमा बढ़ाकर 24 हफ्ते तक की गई. इसके अलावा, कुछ खास केस में 24 हफ्ते के बाद भी अबॉर्शन कराने की अनुमति ली जा सकती है. भारत में अबॉर्शन को तीन श्रेणी में बांटा गया है.
1. प्रेग्नेंसी के 0 से 20 हफ्ते तक
अगर महिला मां बनने के लिए मानसिक तौर पर तैयार नहीं है या फिर कांट्रासेप्टिव मैथड या डिवाइस फेल हो चुका हो और महिला न चाहते हुए भी प्रेग्नेंट हो गई हो तो वो अबॉर्शन करवा सकती है. इसके लिए बस एक रजिस्टर्ड डॉक्टर की लिखित परमिशन जरूरी है.
2. प्रेग्नेंसी के 20 से 24 हफ्ते तक
अगर मां या बच्चे के मानसिक/शारीरिक हेल्थ को किसी तरह का खतरा है, तो महिला अबॉर्शन करा सकती है. हालांकि, ऐसे मामलों में दो डॉक्टरों की लिखित परमिशन जरूरी है.
3. प्रेग्नेंसी के 24 हफ्ते बाद
अगर महिला यौन उत्पीड़न या रेप का शिकार हुई है तो ऐसे केस में 24 हफ्ते बाद भी अबॉर्शन करवा सकती है. अगर गर्भवती माइनर हो, विकलांग हो, मानसिक रूप से बीमार हो तो भी अबॉर्शन करवा सकती है. अगर प्रेग्नेंसी के दौरान महिला का मेरिटल स्टेटस चेंज हो जाए (उसका तलाक हो जाए या विधवा हो जाए), तो भी अबॉर्शन करवा सकती है.
क्या होता है गर्भपात का प्रोसीजर?
फोर्टिस हॉस्पिटल (वाशी, मुंबई) की ऑब्सटेट्रिक्स और गाइनोकोलॉजिस्ट डॉ. नेहा बोथरा के अनुसार, गर्भपात कभी-कभी कुदरती भी हो जाता है, जिसे स्पॉन्टेनियस अबॉर्शन कहा जाता हैं और जब मेडिकल तरीके से प्रेग्नेंसी को खत्म किया जाता है, उसे मेडिकल अबॉर्शन कहा जाता हैं. मेडिकल टर्मिनेशन के अलग-अलग तरीके हैं. अब किस तरीके से अबॉर्शन किया जाना है, यह कई बातों पर निर्भर होता है, जैसे कितने महीने की प्रेग्नेंसी है, महिला की शारीरिक स्थिति कैसी है, कहीं महिला को कोई मेडिकल कंडीशन जैसे हार्ट की समस्या, हाई बीपी, एनेस्थीसिया है या नहीं आदि.
मेडिकल प्रोसीजर में दवाओं के जरिए गर्भपात होता है. इसके अलावा, दूसरा तरीका है सर्जिकल मेथड, जिसमें यूटरस को खाली कर दिया जाता है. सर्जिकल मेथड एडवांस प्रेग्नेंसी में इस्तेमाल किया जाता है. 4 से 5 महीने (12 से 20 सप्ताह) की प्रेग्नेंसी होने पर डिलीवरी पेन देकर अबॉर्शन कराया जाता है.
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