Artifical Intelligence : आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) तकनीक ने अमेरिका में रहने वाले 4 साल के एलेक्स की जान बचा ली. एलेक्स को एक विरले न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर की पीड़ा हो रही थी, लेकिन कोई डॉक्टर इसका सही इलाज नहीं कर पा रहे थे. 3 साल तक 17 डॉक्टरों ने उसका इलाज किया लेकिन कोई भी बीमारी का सही निदान नहीं कर पाया. एलेक्स कष्ट से तड़प रहा था और उसके शरीर के दोनों हिस्सों में असंतुलन था. बच्चे की परेशानी उसकी मां को देखा नहीं जा रहा था. एलेक्स की मां कर्टनी ने जब चैट जीपीटी नामक एआई सिस्टम पर उसकी एमआरआई रिपोर्ट्स फीड की, तो चैट जीपीटी ने सही बीमारी की पहचान 'टेथर्ड कॉर्ड सिंड्रोम' के रूप में की. इसके बाद एक न्यूरोसर्जन ने एलेक्स की सर्जरी की और अब वह पूरी तरह से ठीक हो रहा है. यह घटना एआई की मेडिकल फील्ड में बढ़ती भूमिका को दर्शाती है.
चैट जीपीटी जैसे एआई सिस्टम डॉक्टरों की मदद कर सकते हैं और जटिल मामलों में निदान में सुधार ला सकते हैं. यद्यपि एआई, डॉक्टरों की जगह नहीं ले सकता, लेकिन एक मददगार के रूप में काफी उपयोगी साबित हो सकता है. एलेक्स की कहानी तो एआई की सलाह का महत्व साबित करती ही है.
मेडिकल फिल्ड में एआई का योगदान
एक नई रिपोर्ट से पता चला है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई, बीमारियों का पता लगाने और उनका इलाज करने में काफी मददगार साबित हो रहा है. ब्रिटेन के एक सरकारी एजेंसी नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ एंड केयर रिसर्च ने यह रिपोर्ट तैयार की है. रिपोर्ट के मुताबिक, एआई से अस्पतालों को पहले से ही पता चल जाता है कि कब कितने बेड की जरूरत है. इसके अलावा, स्तन कैंसर की जांच में भी एआई ने डॉक्टरों का काम आसान कर दिया है एआई ने रेडियोलॉजिस्ट का काम आधा कर दिया है. एनआईएचआर की वरिष्ठ रिसर्च फेलो डॉ. जेमा क्विंट ने कहा कि एआई पर भरोसा दिखाने का समय आ गया है. एआई आंखों की बीमारियों का भी पहले से पता लगा सकता है. यह रिपोर्ट एआई की बढ़ती क्षमताओं को दर्शाती है और भविष्य में मेडिकल क्षेत्र में एआई की भूमिका और बढ़ेगी.