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AIIMS का दावा: कैंसर को हराने में सफल होते हैं 80 फिसदी बच्चे, इलाज के परिणाम बेहतर

Childhood Cancer Survivor Day: इस खास अवसर पर एम्स के डॉक्टरों का दावा कि उनके यहां जितने भी कैंसर के मरीज बच्चे हैं उनमें से 47-80 प्रतिशत बच्चे पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं.

Childhood Cancer Survivor Day: भारत में  हर साल 70 हजार कैंसर के ऐसे मामले आते हैं. जिसमें यह बीमारी बच्चों को हुई रहती है. हर साल 70 हजार बच्चों में कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी डायग्नोसड की जाती है. जिसमें से 400 का इलाज एम्स में किया जाता है. एम्स ने हाल ही में दावा किया है कि जिन कैंसर पीड़ित बच्चों का इलाज उनके यहां पर हो रहा है. उनमें से  75-80 प्रतिशत बच्चे ऐसे हैं जो पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं. हाल ही में एम्स के कैंसर स्पेशलिस्ट डॉक्टरों ने 'चाइल्डहुड कैंसर स्पेशलिस्ट डे' के अवसर पर कहा है. 

दिल्ली एम्स के डॉक्टरों का दावा

डॉक्टरों ने कहा है कि यह एक खोखला दावा नहीं है बल्कि हमारे पास पूरा रिकॉर्ड है.  डॉक्टरों के मुताबिक, एम्स पीडियाट्रिक ऑन्कोलॉजी डिवीजन भारत में स्पेशल कैंसर सर्वाइवर सेवाएं प्रदान करता है. वे एक साप्ताहिक क्लिनिक चलाते हैं जहां जिन बच्चों ने अपना इलाज सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है उनका पंजीकरण किया जाता है. जबकि जिनका पहले इलाज हो चुका है उनका डेवलपमेंट, सामाजिक मुद्दे, शिक्षा, समाज में एकीकरण और कैंसर के इलाज और उनसे होने वाले साइडइफेक्ट्स पर भी जोर डाला जाता है. एम्स में बाल रोग विभाग की प्रोफेसर डॉ. रचना सेठ ने कहा,'हर साल लगभग 250 मरीज हमारे सेंटर में अपना इलाज कराते हैं और सर्वाइवर क्लिनिक में पंजीकृत होते हैं.' उन्होंने बताया कि यदि कैंसर के इलाज के बाद दिल संबंधी किसी भी तरह कि दिक्कतें, न्यूरोकॉग्निटिव डेफिसिट, मेटाबोलिक सिंड्रोम या प्रजनन संबंधी समस्याएं जैसी अन्य समस्याएं उत्पन्न होती हैं, तो उन्हें संबंधित विशेषज्ञों के सलाह के लिए कॉन्टैक्ट किया जाता है.

बच्चों में होने वाले कैंसर के शुरुआती लक्षण होते हैं कुछ ऐसे

एम्स में बाल रोग विभाग की प्रोफेसर डॉ. रचना सेठ ने कहा,'हर साल लगभग 250 मरीज हमारे सेंटर में अपना इलाज पूरा करते हैं और सर्वाइवर क्लिनिक में पंजीकृत होते हैं." कैंसर के उपचार के बाद सिंड्रोम, या प्रजनन संबंधी समस्याएं उत्पन्न होती हैं. उन्हें संबंधित विशेषज्ञों के परामर्श के माध्यम से संबोधित किया जाता है. डॉ. सेठ ने कहा कि जीवित बचे लोगों पर बीमारी की पुनरावृत्ति के लिए बारीकी से निगरानी की जाती है. उनकी कमजोर इम्यून सिस्टम के कारण इन बच्चों को पुन: टीकाकरण पाठ्यक्रम से गुजरना पड़ता है जो उनके उपचार पूरा होने के छह महीने बाद शुरू होता है. उन्होंने कहा कि बचपन के कैंसर वयस्कों के कैंसर से भिन्न होते हैं और यदि जल्दी पता चल जाए और उचित इलाज किया जाए तो उनमें से अधिकांश को ठीक किया जा सकता है. उन्होंने चेतावनी दी कि सामान्य लक्षण, जैसे लगातार बुखार,शरीर में एनर्जी नहीं रहना, पीलापन, असामान्य गांठ या सूजन, वजन कम होना, आसानी से चोट लगना और ब्लड निकलना, आँखों का भेंगा होना एक और भी कई शुरुआत छोटे-छोटे संकेत है जिसे अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है.

बचपन में होने वाले सबसे आम कैंसर

ल्यूकेमिया/लिम्फोमा, सीएनएस ट्यूमर, अन्य ठोस ट्यूमर जैसे न्यूरोब्लास्टोमा, विल्म्स ट्यूमर, टिश्यूज सार्कोमा, हड्डी के ट्यूमर और रेटिनोब्लास्टोमा शामिल हैं. बच्चों में इन कैंसरों का पता चलते ही हॉस्पिटल में उनका खास इलाज चलता है. साथ ही माता-पिता को खास सलाह दी जाती है कि किस तरह से वह अपने बच्चों की आने वाली जिंदगी में सुधार कर सके. अगर किसी बच्चे को एक बार कैंसर हो गया है तो उन्हें अपनी लाइफस्टाइल और चीजों का खास ख्याल रखना होता है नहीं तो आगे जाकर उन्हें दूसरी तरह कि शारीरिक दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है. 

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