क्या दिल्ली-एनसीआर के पॉल्यूशन से हो सकता है फेफड़ों का कैंसर, यह कितना खतरनाक?
वायु प्रदूषण का शरीर के विभिन्न अंगों पर दूरगामी प्रभाव पड़ता है. फेफड़ों के लिए, यह एलर्जिक राइनाइटिस, अस्थमा, सीओपीडी, साथ ही फेफड़ों के कैंसर जैसी स्थितियों को जन्म दे सकता है.
सोमवार की सुबह दिल्ली और एनसीआर में लाखों लोगों को वायु गुणवत्ता के बिगड़ते संकट का सामना करना पड़ा. क्योंकि रविवार को इस क्षेत्र का प्रदूषण स्तर 'गंभीर प्लस' श्रेणी में पहुंच गया. जहरीली हवा तत्काल और दीर्घकालिक स्वास्थ्य जोखिम प्रस्तुत करती है. जिससे फेफड़ों के कैंसर, अस्थमा और निमोनिया जैसी गंभीर बीमारियों की संभावना बढ़ जाती है.
सरकार वाहनों के उपयोग को सीमित करने से लेकर सरकारी कार्यालयों को 50 प्रतिशत क्षमता पर काम करने का आदेश देने तक कई उपायों के साथ वायु प्रदूषण को रोकने की कोशिश कर रही है. इसके बावजूद, वायु गुणवत्ता में कोई सकारात्मक सुधार नहीं हुआ है. क्योंकि सरकार के अल्पकालिक प्रयास प्रदूषण में योगदान देने वाले कारकों की तुलना में बहुत छोटे हैं.
AQI खराब होता है, विशेषज्ञ संकेत देते हैं कि यह फेफड़ों से शुरू होकर कई अंगों को प्रभावित करता है, क्योंकि प्रदूषक उनके माध्यम से शरीर में प्रवेश करते हैं. एलर्जिक राइनाइटिस, नाक में जलन, सिरदर्द और त्वचा संबंधी समस्याएं शामिल हैं. लगातार संपर्क में रहने से अस्थमा, सीओपीडी और यहां तक कि फेफड़ों के कैंसर जैसी स्थितियां हो सकती हैं.
दिल्ली में पॉल्यूशन का लेवल दिन परदिन बढ़ता जा रहा है
हर साल की तरह इस साल भी दिल्ली में प्रदुषण खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है. ऐसे में लोगों का ना सिर्फ सांस लेना मुश्किल हो रहा है बल्कि लोगों में कई बीमारियां भी देखने को मिल रही है. एक हालिया रिसर्च में ये बात सामने आई है कि प्रदुषण से कैंसर भी हो सकता है. जानिए क्या कहती है ये रिसर्च.
फेफड़ों में कैंसर की बीमारी
अरविंद कुमार ने बताया कि फेफड़े का कैंसर खतरनाक बीमारी है और इसके निदान के बाद पांच साल तक जीवित रहने की उम्मीद होती है. धूम्रपान नहीं करने वाले युवाओं और महिलाओं में बढ़ते मामले को देखकर हम हैरान रह गए. एसजीआरएच में फेफड़ों के सर्जन अरविंद कुमार ने कहा कि इन मरीजों में तकरीबन 50 प्रतिशत धूम्रपान नहीं करते थे. (50 वर्ष से कम) उम्र समूह में यह आंकड़ा बढ़कर 70 प्रतिशत हो गया.
सर गंगा राम अस्पताल (एसजीआरएच) में डॉक्टरों ने अध्ययन के नतीजे को चिंताजनक बताया है. इसके तहत मार्च 2012 से जून 2018 तक 150 से ज्यादा मरीजों का विश्लेषण किया गया. आमतौर पर ये माना जाता है कि लंग कैंसर की धूम्रपान मुख्य वजह है लेकिन ठोस सबूत हैं कि फेफड़े के कैंसर के बढ़ते मामलों में प्रदूषित हवा की भूमिका बढ़ रही है.फेफड़े के कैंसर से धूम्रपान करने वाले ही नहीं बल्कि धूम्रपान नहीं करने वाले लोग भी जूझ रहे हैं और ऐसा शायद बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण हो रहा है. पिछले छह साल में किये गए एक नए अध्ययन में यह दावा किया गया है.
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लंग्स कैंसर के लक्षण
लंग्स कैंसर के कई कारण हो सकते हैं जैसे- जेनेटिक, उम्र, हद से ज्यादा स्मोकिंग,फैमिली हिस्ट्री, खराब खानपान और लाफस्टाइल इस बीमारी के जोखिम को बढ़ाते हैं. फेफड़ों के कैंसर को साइलेंट किलर कहा जाता है. आमतौर पर यह दो तरह का होता है. गैर-लघु कोशिका कार्सिनोमा (एनएससीएलसी) और लघु कोशिका कार्सिनोमा (एससीएलसी).
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आम से दिखने वाले लक्षण फेफड़ों के कैंसर के शुरुआती लक्षण हो सकते हैं. जैसे- तीन सप्ताह से ज्यादा दिनों तक खांसी रहना, छाती में काफी ज्यादा इंफेक्शन होना. खांसी के साथ खून निकलना, सांस लेने में या खांसने के दौरान खून निकलना, हमेशा थकावट लगना भी इसके लक्षण हो सकते हैं. वजन का कम होना, भूख न लगना, चेहरे या गर्दन में सूजन होना, आवाज बैठना, छाती में घरघराहट होना इसके शुरुआती लक्षण हो सकते हैं.
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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