Alzheimer Disease: अल्जाइमर बीमारी से पूरी दुनिया में लगभग साढ़े पांच करोड़ से ज्यादा लोग पीड़ित हैं. लेकिन चिंता की बात यह है कि इस बीमारी का फिलहाल कोई ट्रीटमेंट नहीं है, जो ठीक होने का पक्के तौर पर दावा कर सके. हालांकि अल्जाइमर का इलाज खोजने की कोशिशों में हाल के वक्त में कुछ प्रोग्रेस जरूर हुई है. अल्जाइमर जैसी खतरनाक बीमारी के खिलाफ दो दवाओं के विकास में सहायता मिली है. ये दवाएं रोग को जड़ से खत्म तो नहीं कर सकतीं, लेकिन बीमारी के बढ़ने के समय में इजाफा जरूर कर सकती हैं.


ज्यादातर क्लिनिकल टेस्ट में इन दवाओं की इफेक्टिवनेस को देखते हुए सिम्टम्स यानी लक्षणों के पैदा होने के बाद ही ट्रीटमेंट शुरू होता है. इसका अर्थ यह है कि इस बीमारी से शरीर को होने वाला नुकसान पहले ही हो चुका होता है. हालांकि ऐसा माना जा रहा है कि अगर इस बीमारी से पीड़ित मरीजों का ट्रीटमेंट पहले ही शुरू कर दिया जाए यानी लक्षणों के दिखने से पहले ही, तो इससे होने वाली शारीरिक परेशानी और तकलीफों को रोका जा सकता है. लेकिन यहां एक समस्या यह भी है कि क्लिनिकल ​​​​सिम्टम्स, जो डॉक्टर्स अल्जाइमर के मरीजों का इलाज करने के लिए देखते हैं, वे न्यूरोडीजेनेरेशन होने के बाद ही नजर आते हैं.


10 साल पहले लग जाएगा बीमारी का पता!


न्यूज एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, करोलिंस्का इंस्टीट्यूट की हालिया स्टडी अल्जाइमर के निदान के लिए अभी इस्तेमाल किए जाने वाले बायोमार्कर के मुकाबले एक अलग बायोमार्कर का इस्तेमाल करने को कहती है. इस स्टडी में पाया गया है कि बायोमार्कर, जो किसी व्यक्ति के खून में पाया जा सकता है, ये अल्जाइमर के शरीर में लक्षण शुरू होने से 10 साल पहले ही इसका पता लगा सकता है. ये बॉड़ी में इस बीमारी के लक्षणों के दिखने या उभरने से पहले ही इसकी आमद को रोकने का एक मौका प्रदान करता है.


कैरोलीन ग्राफ और शार्लोट जोहानसन के नेतृत्व में किए गए इस अध्ययन में स्वीडन के परिवारों के डेटा का इस्तेमाल किया गया था, जिन्हें अल्जाइमर की एक ऐसी बीमारी थी, जो जेनेटिक (आनुवंशिक) म्यूटेशन की वजह से पैदा हुई थी. अगर माता-पिता में एडीएडी है, तो उनके बच्चों में म्यूटेशन आने की 50 प्रतिशत संभावना रहती है. 


GFAP क्या है?


स्टडी के मुताबिक, बीमारी के लक्षणों को देखने के लिए एमआरआई इमेजिंग और कॉग्निटिव टेस्ट जैसे बाकी टेस्ट भी किए. इस अध्ययन में खोज का मुख्य मुद्दा यह था कि एक खास प्रोटीन का लेवल, जिसे GFAP कहा जाता है, स्टडी में बाकी ज्ञात बीमारी से संबंधित रक्त आधारित बायोमार्कर के एनालिसिस से पहले बढ़ गया. ये बढ़ोतरी अल्जाइमर बीमारी के लक्षणों के शुरू होने से 10 साल पहले ही शुरू हो गई थी. बता दें कि GFAP एक ऐसा प्रोटीन है, जो दिमाग के एस्ट्रोसाइट्स द्वारा रिलीज किया जाता है. ये खास सेल्स होती हैं, जो बाकी कामों के साथ मस्तिष्क के इम्यून सिस्टम में हिस्सा लेती हैं. रिसर्च से ये भी मालूम चलता है कि जीएफएपी का लेवल उन लोगों में ज्यादा होता है, जिन्हें बिना किसी आनुवंशिक कारण के प्रीक्लिनिकल अल्जाइमर बीमारी होती है.


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