जब हम वायु गुणवत्ता के बारे में बात करते हैं तो अक्सर पीएम 2.5 का उल्लेख करते हैं. पीएम 2.5 वो खतरनाक कण होते हैं जो हवा में आसानी से घुले रहते हैं और सांसों के जरिए हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं. जब आप आग से निकलने वाले काले रंग का धुएं का गुबार देखते हैं तो वास्तव में आप छोटे कणों को देख रहे हैं जो हवा में रहते हैं. ये कण महारे फेफड़ों में भी गहराई तक पहुंच सकते हैं. पीएम 2.5 का स्तर जितना अधिक होगा, स्वास्थ्य पर उतना ही अधिक प्रभाव पड़ेगा. पीएम 2.5 कणों के कारण खांसी, जुकाम आदि समस्याओं से लेकर अस्थमा और दिल से जुड़ी बीमारियां तक होने का खतरा होता है.
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शोध में पाया गया है कि जंगल में लगी आग के चलते अस्पताल में 8 फीसदी अस्थमा के मरीज ज्यादा बढ़ गए हैं. कनाडा के एक हालिया अध्ययन में पीएम 2.5 में बढ़ोत्तरी के चलते दिल के दौरे, स्ट्रोक, अस्थमा और अन्य श्वसन समस्याओं के लिए एम्बुलेंस कॉल में यकायक बढ़ोत्तरी दर्ज की गई. पीएम 2.5 के कण फेफड़ों में जाते हैं और सूजन और ऑक्सीडेटिव तनाव का कारण बनते हैं.
पीएम 2.5 कणों के वायु में घुले होने के कारण सांस लेने पर ये अंदर जोते हैं जिनके कारण लोगों की औसत आयु तक में कमी आने लगती है. इससे हमारे इम्युनिटी सिस्टम को भी नुकसान पहुंचता है. साथ ही वायरस और हानिकारक बैक्टीरिया से लड़ना कठिन हो जाता है. मोंटाना के एक अध्ययन में पाया गया है कि जंगल की आग से प्रभावित लोगों में फ्लू के मौसम में इन्फ्लूएंजा तेजी से फैला था.
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