कोरोना महामारी के दौरान विशेषकर पहली लहर के बाद लॉकडाउन अवधि में लोगों के बीच डिप्रेशन और चिंता के मामलों में बढ़ोतरी देखी गई है. ये खुलासा दिल्ली के निजी अस्पताल मैक्स की रिसर्च में हुआ है. अस्पताल के प्रवक्ता ने बताया कि ऑनलाइन सर्वे का मकसद महामारी के दौरान लोगों में जागरुकता, चिंता और डिप्रेशन के लक्षणों का मूल्यांकन करना था.
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ मेंटल हेल्थ सिस्टम्स में प्रकाशित रिसर्च के मुताबिक सर्वेक्षण में कुल 1,211 लोगों को शामिल किया गया जिसमें से 1,069 लोगों के जवाब विश्लेषण में शामिल थे.
डिप्रेशन और चिंता का मूल्यांकन करने के लिए सर्वेक्षण
रिसर्च से पता चला कि उनमें से 44.6 फीसद हल्की चिंता, 30.1 फीसद मध्यम चिंता और 25.3 फीसद गंभीर चिंता के मापदंड पर गए. उसके अलावा, 26.1 फीसद हल्के डिप्रेशन, 16.7 फीसद मध्यम डिप्रेशन और 3.8 फीसद गंभीर डिप्रेशन के मापदंड की बात सामने आई. रिपोर्ट के मुताबिक राष्ट्रीय स्तर पर लॉकडाउन के दौरान चार सप्ताह तक प्रश्नावली के जरिए डेटा को इकट्ठा किया गया था.
प्रतिभागी भारत के शहरी, कम से कम 10वीं तक पढ़े लिखे, बुनियादी अंग्रेजी भाषा के जानकार और 18 साल से ज्यादा की उम्र वाले थे. डॉक्टरों ने बताया कि मानसिक रोग वाले प्रतिभागियों को विश्लेषण से बाहर रखा गया. वेब सर्वे का इस्तेमाल करते हुए रिसर्च किया गया था और आबादी तक वितरण किया गया.
क्या Vitamin-D की कमी बढ़ा सकती है मोटापा? इस तरह आप कर सकते हैं भरपाई
ब्लड प्रेशर काबू करने के लिए आपको जरूर खाने चाहिए ये फूड्स, जानें कैसे होगा फायदा
महामारी की लहर में बढ़े डिप्रेशन और चिंता के मामले
अस्पताल के अधिकारियों ने कहा कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स और मेल से इंटरनेट पर सर्वे का प्रसारण हुआ. अस्पताल के डॉक्टर समीर मल्होत्रा ने कहा, "कोरोना महामारी में आबादी के बीच देखी गई डिप्रेशन और चिंता के मामलों में निश्चित बढ़ोतरी थी, विशेषकर पहली लहर के मुकाबले दूसरी लहर के बाद. एक रिसर्च के अनुसार कोरोना महामारी की पहली लहर के दौरान आबादी में 1,069 लोगों के सैंपल आकार पर पिछले साल रिसर्च किया, तो हमने पाया कि उसमें हिस्सा लेनेवाले 55 फीसद में स्पष्ट चिंता के लक्षण थे और एक चौथाई से ज्यादा ने डिप्रेसिव लक्षणों का अनुभव किया."