नई दिल्लीः आज वर्ल्ड पार्किंसन डे है. इस मौके पर सचिन तेंदुलकर ने एक ट्विट करते हुए लिखा है कि #WorldParkinsonsDay हमको याद दिलाता है कि हर हेल्दी दिन हमारे लिए बहुत कीमती है जरा उन 10 मिलियन लोगों की सोचों जो पार्किंसन बीमारी से जूझ रहे हैं.

आज का दिन दुनिया भर में पार्किंसन बीमारी से लड़ रहे लोगों के नाम है. पार्किंसन बीमारी में बुजुर्गो के अंगों पर असर होता है, किसी के हाथ पैर हिलने लगते हैं तो किसी को बोलने में तकलीफ होती है, पीड़ि‍त व्यक्ति खुद से कुछ भी कर पाने में असमर्थ होता है. उसे अपनी जिंदगी बोझिल लगने लगती है.

पार्किंसन बीमारी में क्या होता है-




  • आमतौर पर ये बीमारी 60 साल से अधिक उम्र के लोगों को अपनी चपेट में लेती है. ये बीमारी लाइलाज नहीं है इससे निपटा जा सकता है.

  • डॉक्टर्स के मुताबिक, व्यायाम पार्किंसन बीमारी को ठीक करने में अहम भूमिका निभाता है. अगर थोड़ी एक्सरसाइज, थेरेपी और काउंसलिंग की जाए तो पार्किंसन बीमारी को मात दी जा सकती है.

  • पार्किंसन बीमारी की वजह से शरीर में अकड़न आ जाती है. कई बार शरीर को हिलाना भी मुश्किल होता है.

  • मरीज का पार्किंसन रोग में हाथ-पैरों की कंपन पर कंट्रोल नहीं होता.

  • पार्किंसन में शरीर के अन्य हिस्सों में हलचल की गति धीमी हो जाती है.



पीडीएमडीएस के फाउंडर डॉ भीम सिंहल का कहना है कि पार्किंसन बीमारी में बोली में भी फर्क आ सकता है. गति में फर्क पड़ता है. चेहरे से मुस्‍कुराहट गायब हो जाती है. व्यक्ति का शरीर झुक जाता है. बॉडी में स्टिफनेस रहती है. डॉ. भीम कहते हैं बेशक, पार्किंसन बीमारी को ठीक करने के लिए कुछ दवाएं हैं. लेकिन इसके साथ ही पार्किंसन के मरीज को सपोर्ट और सहायता की जरूरत होती है.

क्यों होता है पार्किंसन रोग-
2016 में आई एक रिसर्च के मुताबिक, एक जीन के कारण पार्किंसन रोग होता है. शोध के मुताबिक, टीएमईएम230 नामक जीन में म्‍यूटेशन से पार्किंसन रोग होता है. इस रोग में सेंट्रल नर्वस सिस्टम में विकार पैदा होता है, जिससे व्यक्ति की शारीरिक गतिविधियां प्रभावित होती हैं. इस रोग में अक्सर झटके भी आते हैं. यानि जीन में बदलाव ही पार्किंसन रोग का मुख्य कारण है. रिसर्च के मुताबिक, यह जीन एक प्रोटीन का उत्पादन करता है, जो न्यूरॉन्स में न्यूरोट्रांसमीटर डोपेमाइन के पैकेजिंग में शामिल है. पार्किंसन रोग में डोपोमाइन का उत्पादन करने वाले न्यूरॉन्स की संख्या घट जाती है.

जिन लोगों के जीन में यह बदलाव देखा गया, उनमें कंपकपाहट, धीमी गतिविधियां और अकड़न जैसे लक्षण देखे गए. उनमें डोपेमाइन न्यूरॉन की कमी और जीवित बचे न्यूरॉन में प्रोटीन का असामान्य संचय देखा गया. हालांकि जीन में बदलाव का कारण सामने नहीं आया है. इसके अलावा पार्किंसन रोग के क्या कारण है इस पर शोध होना बाकी है.

पार्किंसन बीमारी से हो सकता है बचाव-

पार्किंसन की बीमारी नर्वस सिस्टम पर हमला करती है, जिसके कारण शरीर में कंपकंपी होती है, मांसपेशियों में जकड़न आ जाती है तथा सामान्य शारीरिक गतिविधियों में भी गड़बड़ी पैदा हो जाती है.



यह बीमारी मस्तिष्क कोशिकाओं (न्यूरॉन्स) की कमी से होती है, जो डोपेमाइन का उत्पादन करती हैं. डोपेमाइन न्यूरॉन्स को आपस में संपर्क करने के लिए एक जरूरी न्यूरोट्रांसमीटर के रूप में काम करता है.



सस्केचेवान विश्वविद्यालय के शोध दल ने अल्फा-सिनुक्लिन (एएस) प्रोटीन पर ध्यान केंद्रित किया, जो डोपेमाइन का विनियमन करती है.



पार्किंसन रोग के शिकार लोगों में एएस मिसफोल्ड (प्रोटीन की असामान्य जैविक प्रकिया) होकर एक सघन संरचना में बदल जाता है, जो डोपेमाइन का उत्पादन करनेवाले न्यूरॉन्स को नष्ट करने लगता है.



सस्केचेवान विश्वविद्यालय के शोध दल के प्रमुख शोधार्थियों में से एक जेरेमी ली का कहना है, “वर्तमान चिकित्सकीय यौगिकों में जिंदा बचे कोशिकाओं से डोपेमाइन के उत्पादन को बढ़ाने पर ध्यान दिया जाता है, लेकिन यह तभी तक प्रभावी है जब तक इस काम को करने के लिए कोशिकाओं की पर्याप्त संख्या जीवित हो.”



ली ने आगे कहा, “हमारा दृष्टिकोण डोपेमाइन का उत्पादन करनेवाली कोशिकाओं के एएस को मिसफोल्ड होने से रोकना है.”
हालांकि इस प्रक्रिया को रोकना एक बड़ी रासायनिक चुनौती है. लेकिन ली ने कहा कि उनके दल ने 30 अलग-अलग दवाइयों को विकसित कर लिया है, जो इस काम को कर सकती हैं.