Autism Disorder In Kids: ऑटिज्म डिसऑर्डर एक प्रकार की मानसिक बीमारी है. ये एक ऐसी बीमारी है जिससे सर्वाधिक रूप से बच्चे प्रभावित होते हैं. ये बीमारी पीड़ित बच्चे के व्यवहार पर असर डालती है. ऑटिज्म के लक्षण बच्चों में बचपन से ही दिखाई देने लगते हैं. ऐसे में इस बीमारी का समय रहते इलाज कराना जरूरी है नहीं तो इससे मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ सकता है. अगर हम जानने की कोशिश करें कि क्या यह बीमारी सभी बच्चों में एक जैसी ही होती है तो इस बारे में एक्सपर्ट बताते हैं कि इस बीमारी से पीड़ित बच्चों में होने वाली परेशानी एक जैसी नजर नहीं आती है. आटिज्म से पीड़ित अलग-अलग बच्चों में अलग-अलग लक्षण देखे जा सकते हैं, जिससे कि ये कहा जा सकता है कि लक्षणों और व्यवहार में होने वाली परेशानी के आधार पर आटिज्म को अलग अलग माना जाता है.
ऑटिज़्म के प्रकार
ऑटिज्म एक तरह का न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है. यह एक ग्रोथ संबंधी बीमारी है जिससे पीड़ित बच्चे को बातचीत करने में, पढ़ने-लिखने में और लोगों के बीच मेलजोल बनाने में परेशानी होती हैं. ऑटिज़्म एक ऐसी स्थिति है जिससे पीड़ित बच्चे का दिमाग अन्य लोगों के दिमाग की तुलना में अलग तरीके से काम करता है.ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों और वयस्कों के साथ बेहतर व्यवहार करने और उन्हें बेहतर अवसर उपलब्ध करवाने के लिए हर साल 18 जून को पूरी दुनिया में ऑटिस्टिक प्राइड डे (Autistic Pride Day) मनाया जाता है. ऑटिज्म को उसके लक्षणों और व्यवहार संबंधी परेशानियों के आधार पर चार प्रकार (Types of Autism) में बांटा गया है. इन चार प्रकार के ऑटिज्म में हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि कौन से ऑटिज्म में किस स्तर की परेशानी नजर आती है.
ऑटिज्म के प्रकार (Types of Autism)
अस्पेर्गेर सिंड्रोम (Asperger's syndrome)
इस बारे में एक्सपर्ट बताते हैं कि अस्पेर्गेर सिंड्रोम को ऑटिस्टिक डिसऑडर का सबसे हल्का रूप माना जाता है. आप को बता दें कि इस सिंड्रोम से पीड़ित बच्चे या व्यक्ति कभी कभार अपने व्यवहार से भले ही अजीब लग सकते हैं लेकिन, कुछ खास विषयों में इनकी रूचि बहुत अधिक हो सकती है. हालांकि इन लोगों में मानसिक या सामाजिक व्यवहार से जुड़ी कोई समस्या नहीं होती है.
परवेसिव डेवलपमेंट डिसऑर्डर (Pervasive Developmental Disorder)
आमतौर पर इसे ऑटिज़्म का प्रकार नहीं माना जाता है. कुछ विशेष स्थितियों में ही लोगों को इस डिसॉर्डर से पीड़ित माना जाता है. इसका कारण यह है कि यह बहुत ही सामान्य प्रकार का ऑटिज्म है, जिसमें ऑटिज्म के लक्षण बहुत ही हल्के होते हैं. अगर इससे कोई भी व्यक्ति या बच्चा पीड़ित है तो वह लोगों के बीच मिलने -जुलने और बातचीत करने से कतराता है.
ऑटिस्टिक डिसऑर्डर या क्लासिक ऑटिज्म (Autistic Disorder)
क्लासिक ऑटिज्म से पीड़ित जो बच्चे या व्यक्ति होते हैं उन्हें सामाजिक व्यवहार में और अन्य लोगों से बातचीत करने में मुश्किलें होती हैं. इसके साथ आप देखेंगे कि ये ऐसे लोग या बच्चे हमेशा अलग व्यवहार करेंगे, जो सामान्य बच्चों या लोगों में देखने को नहीं मिलता है. जैसे बोतले समय अटकना, हकलाना या रूक-रूक कर बोलन. इससे पीड़ित व्यक्ति हमेशा आपसे असामान्य व्यवहार करता नजर आएगा. ऐसे लोगों के मानसिक क्षमता के विकास में कमी देखी जाती है.
रैट्स सिंड्रोम (Rat's Syndrome)
रैट्स सिंड्रोम से प्रभावित लोगों के जेंडर को अगर देखा जाए तो आप पाएंगे कि ये लड़कियों में ज्यादा देखने को मिलता है. इस तरह के ऑटिज्म से प्रभावित लोगों के दिमाग का आकार छोटा होता है, उन्हें कई तहर की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. उनका शारिरिक विकास भी प्रभावित होता है. इससे पीड़ित व्यक्ति को चलने में परेशानी आती है और उनके हाथों के टेढ़े होने, सांस लेने में दिक्कत और मिर्गी की परेशानी भी होती है.
ऑटिज्म की पहचान (How to Autism Diagnosed)
इस बीमारी के लक्षण आमतौर पर 12-18 महीनों की आयु में (या इससे पहले भी) दिखते हैं जो सामान्य से लेकर गम्भीर हो सकते हैं। ये समस्याएं पूरे जीवनकाल तक रह सकती हैं. ऑटिज्म को किसी एक मेडिकल टेस्ट से पहचाना नहीं जा सकता है. हालांकि फ्रेजाइल एक्स सिंड्रोम जैसे टेस्ट से ऑटिज्म की तरह के लक्षणों का पता लगाया जा सकता है. हालांकि, विभिन्न स्टडीज़ में कहा गया गया है कि यह डिसऑर्डर कुछ अनुवांशिक और पर्यावरणीय कारणों से होता है, जो कि गर्भ में पल रहे बच्चे के दिमाग के विकास को बाधित करते हैं.
Disclaimer: इस आर्टिकल में बताई विधि, तरीक़ों और सुझाव पर अमल करने से पहले डॉक्टर या संबंधित एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें.
यह भी पढ़ें