Bones Problem: हड्डियां बॉडी की मसल्स को आकार देती हैं. जो ह्यूमन बॉडी चलते हुए और विशेष शेप में दिखाई देती है. वह हड्डी की ही देन होती है. जिस तरह से मसल्स बीमार होती हैं. बॉडी के अन्य आर्गन बीमार हो जाते हैं. उसी तरह हड्डी भी बीमार हो जाती हैं. यदि बॉडी का कोई पार्ट बीमार हो जाता है तो इसकी पुष्टि के लिए उसकी जांच की जाती है. ऐसे ही हडिडयां बीमार हो जाएं तो उसकी जांच भी करानी चाहिए. आइए जानने की कोशिश करते हैं कि महिलाओं को हड्डी बीमार होने पर कौन सी जांच कराना जरूरी है. 


ये हैं हड्डी की कमजोरी के टेस्ट


आपने देखा होगा कि जरा सा नीचे गिरे या चोट लगी और हडडी टूट गई. डॉक्टरों का कहना है कि इस तरह से हडडी टूटना उनके कमजोर होने की निशानी होती है. इनकी मजबूती देखने के लिए बोन डेंसिटी स्कैन किया जाता है. एक तरह से कम डोज वाला एक्सरे होता है. इस टेस्ट में बोन मिनरल डेंसिटी टेस्ट यानि बीएमडी टेस्ट, डीएक्सए और डुअल-एनर्जी एक्स-रे समेत अन्य होते हैं. यदि हडिडयों का रोगा ऑस्टियोपोरोसिस होने का खतरा अधिक होता है तो डॉक्टर इन टेस्ट को कराने की सलाह देते हैं. महिलाओं को ये टेस्ट कराने चाहिए. 


आर्थाेपेडिक हेल्थ स्क्रीनिंग


आर्थाेपेडिक हेल्थ स्क्रीनिंग भी जोड़ों के दर्द से जुड़ा एक टेस्ट है. यह जांच अमूमन उन लोगों में की जाती है, जिनमें अर्थरायटिस या ऑस्टियोपोरोसिस जैसा पारिवारिक इतिहास जुड़ा है. इस बीमारी को जेनेटिक बीमारी होने के रूप में देखा जाता है. इसमें हडडी और जोड़ों की जांच की जाती है. बोन डेंसिटोमेट्री, डिस्कोग्राफी, स्केलेटल स्किन्टिग्राफी, माइलोग्राफी और इलेक्ट्रोमोग्राफी कुछ सामान्य आर्थाेपेडिक टेस्ट होते हैं. 


किसे होता है खतरा


सभी महिलाओं को हडिडयों के रोग होने का खतरा नहीं होता है. लेकिन कुछ विशेष कंडीशन में ये परेशान होने लगती हैं. महिलाओं का वजन कम होने पर, 50 साल से अधिक उम्र होने पर, 50 के बाद एक या अधिक फ्रैक्चर होने पर, जनेटिक बीमारी होने पर, स्मोकिंग, अधिक शराब पीना, कैल्शियम और विटामिन डी न लेने पर इस तरह की परेशानी होने का खतरा बढ़ जाता है.