मृत डोनर से मिले गर्भाशय से डॉक्टरों ने पहली बार कराया बच्ची का जन्म
मेडिकल जर्नल ने बताया कि बच्ची का जन्म दिसंबर 2017 में हुआ. हाल तक गर्भाशय की समस्या की शिकार महिलाओं के लिये बच्चों को गोद लेना या सरोगेट मां की सेवाएं लेना ही विकल्प थे. जीवित दाता (डोनर) से प्राप्त गर्भाशय के जरिये बच्चे का सफलतापूर्वक जन्म कराने की पहली घटना 2014 में स्वीडन में हुई थी.
पेरिस: चिकित्सीय इतिहास में पहली बार एक मृत अंगदाता से मिले गर्भाशय का प्रतिरोपण किये जाने के बाद एक महिला ने स्वस्थ बच्ची को जन्म दिया है. शोधकर्ताओं ने बुधवार को यह जानकारी दी. यह गर्भाशय की समस्या की वजह से बच्चे को जन्म देने में अक्षम महिलाओं के लिये नई उम्मीद बनकर आया है. ‘लांसेट’ जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार यह सफल ऑपरेशन सितंबर 2016 में ब्राजील के साओ पाउलो में किया गया. यह दिखाता है कि ट्रांसप्लांट प्रैक्टिकल हैं और गर्भाशय की समस्या की वजह से बच्चे को जन्म देने में अक्षम हजारों महिलाओं की मदद कर सकता है.
मेडिकल जर्नल ने बताया कि बच्ची का जन्म दिसंबर 2017 में हुआ. हाल तक गर्भाशय की समस्या की शिकार महिलाओं के लिये बच्चों को गोद लेना या सरोगेट मां की सेवाएं लेना ही विकल्प थे. जीवित दाता (डोनर) से प्राप्त गर्भाशय के जरिये बच्चे का सफलतापूर्वक जन्म कराने की पहली घटना 2014 में स्वीडन में हुई थी. इसके बाद से 10 और बच्चों का इस तरह से जन्म कराया गया है. हालांकि, संभावित जीवित दाताओं की तुलना में ट्रांसप्लाट की चाह रखने वाली महिलाओं की संख्या अधिक है. इसलिये डॉक्टर यह पता लगाना चाहते थे कि क्या किसी मृत महिला के गर्भाशय का इस्तेमाल करके इस प्रक्रिया को अंजाम दिया जा सकता है.
बुधवार को इस सफलता की जानकारी दिये जाने से पहले अमेरिका, चेक गणराज्य और तुर्की में 10 प्रयास किये गए. बांझपन से 10 से 15 फीसदी दंपत्ति प्रभावित होते हैं. इसमें से 500 महिलाओं में एक महिला गर्भाशय की समस्या से पीड़ित रहती है. साओ पाउलो यूनिवर्सिटी के अस्पताल में पढ़ाने वाले चिकित्सक डानी एजेनबर्ग ने कहा, ‘‘हमारे नतीजे गर्भाशय की समस्या की वजह से संतान पैदा कर पाने में अक्षम महिलाओं के लिये नये विकल्प का सबूत प्रदान करते हैं.’’
भारतीय महिलाओं में तेजी से बढ़ रहे हैं ब्रेस्ट कैंसर के मामले, लोगों में अब भी जागरूकता का अभाव
उन्होंने इस प्रक्रिया को ‘चिकित्सीय इतिहास में मील का पत्थर’ बताया. 32 वर्षीय महिला दुर्लभ सिंड्रोम की वजह से बिना गर्भाशय के पैदा हुई थी. प्रतिरोपण के चार महीने पहले उसमें इन-विट्रो निषेचन किया गया जिससे आठ निषेचित अंडे प्राप्त हुए. इन्हें फ्रीज करके संरक्षित रखा गया. गर्भाशय दान करने वाली महिला 45 साल की थी. उसकी मस्तिष्का घात की वजह से मृत्यु हुई थी. उसका गर्भाशय ऑपरेशन के जरिये निकाला गया और दूसरी महिला में प्रतिरोपण किया गया. यह ऑपरेशन 10 घंटे से अधिक समय तक चला.
ऑपरेशन करने वाली टीम ने डोनर के गर्भाशय को जिस महिला में उसका प्रतिरोपण किया गया उसकी धमनी, शिराओं, अस्थिरज्जु और वेजाइनल कैनाल से जोड़ा गया. महिला का शरीर नये अंग को अस्वीकार नहीं कर दे इसके लिये उसे पांच अलग-अलग तरह की दवाएं दी गईं. पांच महीने बाद गर्भाशय ने अस्वीकार किये जाने का संकेत नहीं दिया. इस दौरान महिला का अल्ट्रासाउन्ड सामान्य रहा और महिला को नियमित रूप से माहवारी आती रही. सात महीने के बाद निषेचित अंडों का प्रतिरोपण किया गया. 10 दिन बाद चिकित्सकों ने खुशखबरी दी कि महिला गर्भवती है.
हेयर कंडीशनर से लेकर कैंसर तक से लड़ने में कारगर है सरसों का तेल, जानिए इसके फायदे
गुर्दे में मामूली संक्रमण के अलावा 32 सप्ताह की गर्भावस्था के दौरान सबकुछ सामान्य रहा. करीब 36 सप्ताह के बाद ऑपरेशन के जरिये महिला ने एक बच्ची को जन्म दिया. जन्म के समय बच्ची का वजन ढाई किलोग्राम था. गुर्दे में संक्रमण का एंटीबायोटिक के जरिये इलाज किया गया. तीन दिन बाद मां और बच्ची को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई. इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ फर्टिलिटी सोसाइटीज के अध्यक्ष रिचर्ड केनेडी ने इस घोषणा का स्वागत किया लेकिन इसको लेकर आगाह भी किया. उन्होंने कहा, ‘‘गर्भाशय का प्रतिरोपण नयी तकनीक है और इसे प्रयोगात्मक रूप में लिया जाना चाहिये.’’
ये भी देखें: यूपी में योगी राज चलेगा या हत्यारी भीड़ का राज?
Check out below Health Tools-
Calculate Your Body Mass Index ( BMI )