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कम उम्र में ज्यादा रहता है कैंसर होने का खतरा? नौजवानों के होश उड़ा देगी यह स्टडी

'मेमोरियल स्लोन केटरिंग कैंसर सेंटर' (MSK) के शोधकर्ताओं द्वारा फेफड़ों के कैंसर के माउस मॉडल का इस्तेमाल करके किए एक नया रिसर्च किया. कैंसर का जोखिम असल में बूढ़ापे में कम हो जाता है.

अब तक के हुए रिसर्च में यह माना जा रहा था कि बढ़ती उम्र के साथ कैंसर का खतरा बढ़ने लगता है. क्योंकि उम्र बढ़ने के साथ-साथ इम्युनिटी कमजोरी होती है. साथ ही रिसर्च में यह भी खुलासा हुआ है कि समय के साथ सेल्स में  कई सारे जेनेटिक चेंजेज होते हैं और यही जेनेटिक प्रॉब्लम धीरे-धीरे जमा होने लगते हैं. यही कैंसर के विकास का कारण बनता है.

हालांकि, 'मेमोरियल स्लोन केटरिंग कैंसर सेंटर' (MSK) के शोधकर्ताओं द्वारा फेफड़ों के कैंसर के माउस मॉडल का इस्तेमाल करके किए एक नया रिसर्च किया. जिसमें इस बात का खुलासा किया गया है कि कैंसर का जोखिम असल में बूढ़ापे में कम हो जाता है. डॉ. ज़ुएकियान झुआंग ने विस्तार से बताया कि कैसे कई दूसरे कैंसरों की तरह फेफड़े के कैंसर का भी आमतौर पर 70 साल की उम्र के आसपास इलाज किया जाता है. फिर भी, 80 या 85 साल की उम्र तक इसके होने की संभावना कम हो जाती है.

बढती उम्र में कैंसर होने का खतरा कम होता है

हमारा  यह रिसर्च यह दिखाने में मदद करता है कि ऐसा क्यों होता है? उम्र बढ़ने के साथ कोशिकाएं नए सेल्स बनाने की क्षमता खो देती हैं और इसलिए कैंसर में होने वाली बेतहाशा वृद्धि में कमी आती है. टीम ने यह समझने की कोशिश की कि क्यों कैंसर की दरें बुढ़ापे की शुरुआत में चरम पर होती हैं और फिर कम हो जाती हैं. उन्होंने फेफड़े के एडेनोकार्सिनोमा के आनुवंशिक रूप से संशोधित माउस मॉडल का इस्तेमाल किया. जो एक आम फेफड़े का कैंसर है जो वैश्विक कैंसर से होने वाली मौतों में से लगभग 7% के लिए जिम्मेदार है.

मॉडल में उम्र बढ़ने का अध्ययन चुनौतीपूर्ण है क्योंकि चूहों को मनुष्यों के बीच 65 से 70 साल की उम्र के बराबर उम्र तक पहुंचने में दो साल लगते हैं. प्रक्रिया समय लेने वाली और बहुत सारे संसाधनों की आवश्यकता होने के बावजूद शोधकर्ताओं ने इसे सार्थक पाया.

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रिसर्च में हुआ ये खुलासा

यह भी पता चला कि यह प्रभाव प्रतिवर्ती था. वृद्ध चूहों को अतिरिक्त आयरन देने या उनकी कोशिकाओं में NUPR1 के स्तर को कम करने से उनकी पुनर्योजी क्षमता बहाल हो गई.हमें लगता है कि इस खोज से लोगों की मदद करने की कुछ तत्काल क्षमता हो सकती है. अभी, लाखों लोग विशेष रूप से COVID-19 महामारी के बाद अपर्याप्त फेफड़ों के कार्य के साथ जी रहे हैं क्योंकि उनके फेफड़े किसी संक्रमण या किसी अन्य कारण से पूरी तरह से ठीक नहीं हुए हैं. चूहों में हमारे प्रयोगों से पता चला है कि आयरन देने से फेफड़ों को पुनर्जीवित करने में मदद मिल सकती है, और हमारे पास अस्थमा इनहेलर जैसे फेफड़ों में सीधे दवाएं पहुंचाने के बहुत अच्छे तरीके हैं.फेफड़ों की कोशिकाओं की पुनर्योजी क्षमता को बहाल करने से कैंसर विकसित होने की उनकी क्षमता भी बढ़ सकती है. इसलिए डॉ. टैमेला ने कहा कि यह उन व्यक्तियों के लिए उपयुक्त नहीं हो सकता है जिन्हें कैंसर का उच्च जोखिम है.

Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें. 

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