लंदनः वैज्ञानिकों का कहना है कि कैंसर के मरीजों को कीमाथैरेपी के कारण होने वाले शारीरिक दुष्प्रभावों से कहीं अधिक चिंता इस बात की होती है कि उनकी बीमारी का उनके जीवनसाथी या परिवार पर क्या असर पड़ेगा.


क्या कहती है रिसर्च-
जर्मनी के यूसेंस-स्टिफटंग के शोधकर्ताओं ने पाया है कि कैंसर पीड़ितों के लिए सामाजिक-मानसिक कारक कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो जाते हैं. उन्होंने पाया कि मितली या उल्टी आना जैसी चीजें मरीजों को इतना परेशान नहीं करती. हां, बेशक बालों का गिरना एक बड़ी समस्या बन जाती है लेकिन जैसे जैसे समय गुजरता है, मरीजों को इसकी आदत पड़ जाती है.


क्या कहते हैं शोधकर्ता-
यूसेंस-स्टिफटंग के बेहान अतसेवन का कहना है कि कीमोथेरेपी के पूरे दौरे में मरीजों की सोच किस तरह की होती है, इसे देखने पर पता चलता है कि जिस दुष्प्रभाव से वे सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं वह नींद संबंधी विकार है जो समय के साथ बहुत महत्वपूर्ण होता जाता है, इसके अलावा उन्हें यह चिंता भी सताती है कि उनकी बीमारी का उनके जीवनसाथी और परिवार पर क्या असर पड़ेगा.


इस रिसर्च से डॉक्टर्स को कैंसर के मरीजों की थेरेपी के साथ ही अन्य सुधार का रास्ता मिल गया है. डॉक्टर्स ऐसे मरीजों की साथ-साथ काउंसलिंग करके उन्हें बेहतर महसूस करवा सकते हैं.


नोट: ये रिसर्च के दावे पर हैं. ABP न्यूज़ इसकी पुष्टि नहीं करता. आप किसी भी सुझाव पर अमल या इलाज शुरू करने से पहले अपने डॉक्टर की सलाह जरूर ले लें.