नई दिल्लीः एक नवजात में एक ऐसा सिंड्रोम पाया गया है जो कि बहुत ही रेयर होता है. इसमें बच्चे की जान गहरी नींद में ही चली जाती है. दिल्ली में हाल ही में एक नवजात में ये सिंड्रोम पाया गया. ये ऐसा सिंड्रोम है जो नवजात में जन्म से ही होता है. इसके तहत नवजात खुद सांस लेने में समर्थ नहीं होता. इस मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ. जानें क्या है पूरा मामला.
जब 6 महीने का यथार्थ दत्त प्रीमैच्योपर पैदा हुआ तो डॉक्टर्स ने सलाह दी थी कि उसे अधिक से अधिक सोने दो, इससे उसकी हेल्थ अच्छी होगी. लेकिन 6 महीने बाद डॉक्टर्स ने कहा कि यदि यथार्थ गहरी नींद में चला गया जो उसकी जान जा सकती है.
यथार्थ को जन्मजात केंद्रीय हाइपोवेंटिलेशन सिंड्रोम (Congenital Central Hypoventilation Syndrome (CCHS)) डायगनोज हुआ था. ये एक रेयर जेनेटिक रेस्पिरेटरी डिसऑर्डर है. दुनियाभर में इस तरह के केवल 1000 से 1200 ही मामले सामने आए हैं.
ग्रीक पौराणिक कथाओं में इस डिसऑर्डर को ‘ओन्डाइन के श्राप’ के रूप में भी जाना जाता है जिसमें मरीज हाइपेरेंविलेट करते हैं या एपेनोइक हो जाते हैं. इसके तहत वे सांस लेने के लिए संघर्ष करते हैं क्योंकि वे गहरी नींद के दौरान अपनी श्वास और वेंटिलेशन को नियंत्रित करने में विफल रहते हैं.
ग्रीक पौराणिक कथाओं के मुताबिक, ‘ओन्डाइन का श्राप’ समुद्र के पौराणिक यूनानी देवता, पोसिडॉन से आया था. पोसिडॉन की बेटी जिसे प्यार करती थी, उस आदमी को पोसिडॉन ने श्राप दिया था कि अगर वह सो गया तो वह सांस लेना भूल जाएगा.
इस सिंड्रोम के कारण यथार्थ के लिए डॉक्टर्स ने रात में आर्टिफिशियल वेंटिलेशन और एक डायाफ्राम-पेसिंग सिस्टम के सर्जिकल इंप्लांसटेशन की सलाह दी, जो श्वसन पंप के रूप में बच्चे के खुद के डायाफ्राम का उपयोग करके सांस लेने में मदद करता है. डॉक्टर्स ने ये भी सुझाव दिया कि बाद में एरोबिक एक्सरसाइज के अलावा यथार्थ को इसकी लाइफ टाइम जरूरत पड़ सकती है.
सर गंगाराम हॉस्पिटल के सीनियर कंसल्टेंट,आपातकालीन बाल चिकित्सा, क्रिटिकल केयर और पल्मोनोलॉजी और एलर्जी विकार के डॉ. धीरेन गुप्ता का कहना है कि पिछले दो दशकों में मैंने ये तीसरा मामला देखा है. ये बहुत ही रेयर सिंड्रोम है जिसमें मरीज खुद से सांस लेने में असमर्थ होता है. इतना ही नहीं, इस सिंड्रोम के तहत मरीज नींद के दौरान ये भूल ही जाता है कि सोना कैसे है.
डॉक्टर्स ने यथार्थ के पेरेंट्स को सर्जरी की सलाह दी जिसकी कीमत 38 लाख रूपए थी. यथार्थ के पेरेंट्स इस ट्रीटमेंट को करवाने में असमर्थ हैं.
दिल्ली के करावल नगर में रहने वाले यथार्थ के 31 वर्षीय पिता प्रवीन दत्त का कहना है कि जब मेरा बच्चा दुनिया में आया मेरी जिंदगी बदल गई. एक प्राइवेट फर्म में काम करने वाले प्रवीन ने कहा कि मैं पहले ही अपने दोस्तों और सहयागियों से 6 लाख रूपए उधार ले चुका हूं. ऐसे में मेरा बेटा जिंदगीभर कैसे वेंटिलेशन पर रह सकता है.
यथार्थ के इस सिंड्रोम के बारे में तब पता चला जब वो सिर्फ 16 दिन का था. यथार्थ 25 जुलाई 2018 को सेंट स्टीफन हॉस्पिटल में पैदा हुआ था. पांच महीने बाद ये लोग सर गंगाराम हॉस्पिटल में शिफ्ट हो गए.
यथार्थ की मां 29 वर्षीय मीनाक्षी का कहना है कि डॉक्टर्स ने ये भी बताया था कि यथार्थ प्रीमैच्योर पैदा हुआ है इसीलिए उसका एक लंग कमजोर है जो कि उसकी बढ़ती उम्र के साथ विकसित होगा. लेकिन उसके बाद से बच्चे के मुंह में हवा डालनी पड़ी थी.
शिशु रोग विभाग और क्रिटिकल केयर विभाग की एक रिपोर्ट के अनुसार, जब यथार्थ 4 महीने का था तो उसको एपनिया हुआ था. श्वसन इंफेक्शन के कारण उसे एक बैग और मास्क की जरूरत थी ताकि उसे फिर से ठीक किया जा सके. यथार्थ को कार्डिएक अरेस्ट भी हुआ था जिसमें उसे सीपीआर की जरूरत थी. इसके बाद यथार्थ की केंद्रीय हाइपो वेंटिलेशन और जेनेटिक टेस्ट हुआ जो कि पॉजिटिव पाया गया.
जब डॉक्टर्स ने यथार्थ के परिवार को इंप्लांट की लागत के बारे में और ये भी बताया कि ये सर्जरी अमेरिका में होगी तो उसके पिता ने सारी उम्मीद खो दी लेकिन मां मीनाक्षी लड़ती रही.
यथार्थ की आंटी नीरू का कहना है कि जब वे यथार्थ की देखभाल करती हैं तो वे एक कॉफी पीने भी नहीं जा सकती. इतना ही नहीं, बाथरूम जाते वक्त भी उन्हें डर रहता है कि कहीं उसे कुछ हो ना जाए. पूरा परिवार यथार्थ को रात भर जगाता रहता है ताकि वो गहरी नींद में ना जाएं. ऐसे में यथार्थ चिड़चिड़ा होता तो ये लोग उसको म्यूजिक सुनवाते. जैसे ही वो सोता 1 मिनट बाद उसे दोबारा उठा दिया जाता.
परिवार हर समय यथार्थ की निगरानी करता है और देखता रहता है कि वो गहरी नींद में तो नहीं. वे ये भी देखते हैं कहीं उसकी स्किन या लिप्स पर कोई ब्लू निशान तो नहीं है. ये संकेत बॉडी से ऑक्सीजन कम होने का है.